आरंभिक बाल शिक्षा
स्कूल के लिए तैयारी और जीवनपर्यन्त शिक्षाके लिए आधारशिला तैयार करना
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किसी बच्चे के जीवन में उसके आरंभिक वर्ष (0 से 8 वर्ष) वृद्धि और विकास की सर्वाधिक अद्भुत अवधि होती है। हर तरह की शिक्षा और ज्ञान के लिए ये वर्ष आधारशिला का काम करते हैं। सही आधारशिला के भविष्य में कई फायदे होते हैं : स्कूल में उचित शिक्षा और उच्च शिक्षा की प्राप्ति से समाज को महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं। अनुसंधान दर्शाता है कि गुणवत्तापरक आरंभिक शिक्षा औरआरंभिक बाल विकास(ईसीई)कार्यक्रमों से विफलता तथा पुनरावृत्ति के अवसर कम होते हैं और शिक्षा के हर स्तर पर बेहतर परिणाम मिलते हैं।
प्री-प्राइमरी शिक्षा से बच्चों को एक सुदृढ़ आधारशिला मिलती है जिस पर उनकी समस्त शिक्षा आधारित होती है, इसके बाद आने वाली शिक्षा का प्रत्येक चरणअधिक प्रभावशाली एवं उपयोगी बन जाता है।
यूनिसेफ ने आरंभिक बाल शिक्षाऔर विकासकेन्द्र (सीईसीईडी)अम्बेडकर विश्विद्यालय, दिल्ली और एएसईआर सेंटर के साथ भागीदारी के द्वारा भारतीय आरंभिक बाल शिक्षा प्रभावी अध्ययन (इंडियन अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन इम्पैक्ट स्टडी) प्रस्तुत किया गया है। यह लंबे समय तक चलने वाली एक पांच-वर्षीय रिसर्च स्टडी है, जिसमें भारत के तीन राज्यों — असम, राजस्थान और तेलंगाना के ग्रामीण क्षेत्रों में 4 से 8 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों में से 4 वर्ष के 14000बच्चों के दलों पर अध्ययन किया गया है।
रिपोर्ट दर्शाती है कि गुणवत्तापरक आरंभिक बाल विकास कार्यक्रम में एक वर्ष की भागीदारी भी उच्चतर स्कूली शिक्षा की तैयारी का स्तर बनाती है, जिससे आरंभिक प्राइमरी स्तरों में बेहतर परिणामों को बढ़ावा मिलता है।
अनुसंधान से एक मुख्य चिंता यह उत्पन्न होती है कि प्राथमिक स्कूल में अध्ययन के लिए अधिकांश बच्चे पाँच वर्ष की आयु में प्रवेश लेते हैं, पर शिक्षा पाने की तैयारी का जो स्तर उनमें पाया गया वह उम्मीद से कहीं कम था। अतः वे पाठ्यक्रम की मांग को पूरा नहीं कर पाते तथा उनकी शिक्षा का स्तर कम रह जाता है। अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि स्कूल के लिए तैयारी का बच्चों का यह निम्न स्तर प्राथमिक स्कूली शिक्षा की खराब गुणवत्ता से स्पष्ट रुप से जुड़ा हुआ है। पूरे देश में सामान्यतः उपलब्ध वर्तमान प्रणाली बच्चों के लिए आयु और विकास के अनुरूप पाठ्यक्रम, तरीकों और सामग्रियों का उपयोग नहीं करती। यह 3 नियमों – पढ़ना, लिखना और अंकगणित के औपचारिक शिक्षण के तरीके को अपनाती हैं, जो बच्चों के विकास के लिए नुकसानदेह हैं।
भारत में कई बच्चे आंगनवाड़ी केन्द्रों में जाते हैं, जो बच्चों को शिक्षा देने, खेलकूद, पौष्टिक आहार खिलाने का कार्य करते हैं और उनमें ऐसे कौशल का विकास करती हैं जो जीवनपर्यंत उनकी शिक्षा में काम आएंगे। प्री-प्राइमरीशिक्षा के लिए आंगनवाड़ी केन्द्रों में जाने से, बच्चों की स्कूली शिक्षा के लिए तैयारी हो जाती है, जहां वे संवादात्मक रुप से, खेलकूद आधारित तरीकों के माध्यम से शिक्षित अनुदेशकों से गुणवत्तापरक ज्ञान प्राप्त करते हैं।
जब बच्चे गुणवत्तापरक प्री-प्राइमरी शिक्षा प्राप्त करते हैं – जहां वे खेल सकते हैं, कल्पना कर सकते हैं, सृजन कर सकते हैं, मिलना-जुलना सीख सकते हैं और शिक्षा का आधार तैयार कर सकते हैं – तब वह उन कौशलों का विकास कर सकते हैं जिससे वे स्कूल में सफलता पा सकते हैं, प्राथमिक शिक्षा पूरी कर सकते हैं तथा उच्च स्तर पर जा सकते हैं, अपने आपको एक उत्पादक नागरिक के रूप में बदल सकते हैं, और इस प्रकार यह सुनिश्चित कर सकते हैं वह व्यस्क होकर एक शांतिप्रिय और समृद्ध समाज और अर्थव्यवस्था में अपना बेहतर योगदान दे सकेंगे।
जब बच्चों को प्री-प्राइमरी शिक्षा के लिए भर्ती किया जाता है, तो उनके अभिभावक अथवा अन्य देखभाल करने वाले अपने कामकाज पर जा सकते हैं। वह समझते हैं कि उनके बच्चे एक सुरक्षित शिक्षा वातावरण में हैं। इससे यह परिपूर्ण होता है किआरंभिक बाल शिक्षा देना आर्थिक विकास के लिए भी एक उत्प्रेरक है।