इम्यूनज़ैशन (टीकाकरण )
बच्चों के जीवन और भविष्य की सुरक्षा के लिए सबसे प्रभावी और किफायती तरीकों में से एक है -टीकाकरण।
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शिशुओं को जीवित रहने के लिए टीकाकरण जरूरी है। नियमित टीकाकरण को छोड़ने से नवजात के जीवन पर जानलेवा प्रभाव पड़ सकता है। शिशुओं के जीवन और भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए टीकाकरण सबसे प्रभावी और कम लागत का तरीका है। विश्व में आधे से अधिक बच्चे खतरें की परिस्थिति और स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक टीका प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। यदि शिशु का टीकाकरण किया जाए तो विश्व में उनके बचाव में लगभग 15 लाख शिशु मृत्यु को रोका जा सकता है।
विगत दो दशकों में भारत ने स्वास्थ्य सूचकों,खास करके शिशु स्वास्थ्य से संबंधित सूचकों में सुधार करने के दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति किया है। भारत को सन 2014में पोलियो मुक्त और सन 2015 में मातृत्व व नवजात टेटनस उन्मूलन का सर्टिफिकेट मिला।
टीकाकरण परिवार और समुदाय को सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है। अपने शिशुओं का टीकाकरण करके हम अपने समुदाय के सबसे अधिक जोखिम ग्रस्त सदस्य जैसे नवजात शिशु की सुरक्षा करते हैं।
पूर्ण टीकाकरण को गति प्रदान करके वंचित लोगों तक पहुँच बनाने के लिए भारत सरकार ने एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम,मिशन इंद्रधनुष,प्रारंभ किया है। यह लाभार्थियों की संख्या,भौगोलिक पहुँच और टीकों की मात्रा के आधार पर विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम है,जिसमें प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़ 70 लाख नवजात शिशुओं को लक्षित किया जाता है।
संपूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए प्रति वर्ष भारत में 90 लाख से भी अधिक टीकाकरण सत्रों का आयोजन किया जाता है। इस कार्यक्रम के तहत नीमोकॉक्कल कन्ज्यूगेट वैक्सीन (पीसीवी) और रोटावायरस वैक्सीन (आरवीवी) जैसे नए टीकों को भी शामिल किया गया है। इसके तहत एक देशव्यापी मीजल्स-रूबेला अभियान भी चलाया जा रहा है। जिससे सभी बच्चों को लक्षित किया गया है चाहे उनका आवास कही भी हो।
इस प्रगति के बावजूद भी भारत में शिशु मृत्यु दर और अस्वस्थता में संक्रामक बीमारियों की उच्च भागीदारी है।
भारत में लगभग 10लाख बच्चे अपने पांचवा जन्मदिन मनाने से पहले ही मर जाते हैं। इनमें से चार में से एक की मृत्यु निमोनिया और डायरिया के कारण होती है जो विश्व भर में शिशु मृत्यु के दो प्रमुख संक्रामक बीमारी है। इनमें से अधिकांश को शिशु स्तनपान टीकाकरण एवं उपचार देकर बचाया जा सकता है।
जीवन के पहले वर्ष में भारत में केवल 65प्रतिशत शिशुओं को ही संपूर्ण टीकाकरण मिल पाता है। हालांकि,जीवन बचाने और बीमारियों से बचाव की टीकाकरण की क्षमता के स्पष्ट साक्ष्य मौजूद हैं। फिर भी,विश्व भर में लाखों छोटे शिशु टीकाकरण से वंचित रह जाते हैं जो उन्हें और समुदाय को बीमारियों एवं महामारी के खतरे में डाल सकता है। आज जब विश्व में कम दाम पर जीवन रक्षक टीका उपलब्ध हैं तो यह अस्वीकार्य होना चाहिए।
भारत के विभिन्न राज्यों में टीकाकरण की दर अलग-अलग है और मध्य,बड़े भारत के राज्यों में सबसे कम है। अल्प टीकाकृत या गैर-टीकाकृत शिशुओं की अधिकांश संख्या बड़े राज्यों जैसे बिहार,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश और राजस्थान में है।
टीकाकरण में कमी के कारण भौगोलिक,क्षेत्रीय,ग्रामीण-शहरी,गरीब-अमीर और लिंग संबंधित है। औसतन लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को कम टीकाकरण प्राप्त होता है और हाइट बर्थ ऑर्डर शिशुओं का टीकाकरण अपेक्षाकृत कम होता है।
एनएफएचएस 4, 2015-16 के अनुसार संपूर्ण टीकाकरण की राष्ट्रीय औसत 62 प्रतिशत है। डीपीटी-3पहुँच की 78.4 प्रतिशत और मीजल्स के पहले डोज की पहुँच 81.1प्रतिशत है। संपूर्ण टीकाकरणके लक्ष्य को प्राप्त करने में कुछ नई चुनौतियाँ हैं जैसे कि कार्यकर्ताओं की सीमित क्षमता खासकर खराब प्रदर्शन वाले बड़े राज्यों और ज़मीनी स्तर के,इसके अलावा माँग का सही आंकलन नहीं कर पाना,संसाधनों एवं कोल्ड चेन प्रबंधन जिसके कारण टीकों के नष्ट होने का दर अधिक है। भारत में टीके के माध्यम से रोके जाने वाले बीमारियों की ट्रैकिंग करने के प्रभावी तंत्र का भी अभाव है।
सभी शिशुओं के बचाव एवं फलने-फूलने के लिए सुरक्षा देना
विगत 70वर्षों में टीकाकरण यूनिसेफ के कार्य के केंद्र में रहा है। विश्व भर में शिशुओं के लिए सेवाओं को प्रदान करने के लिए इससे बढ़कर कोई संस्था नहीं है। यूनिसेफ भारत सरकार के टीकाकरण कार्यक्रम का तकनीकी साझेदार है और यह सरकार को सहयोग करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि टीकाकरण के द्वारा सुरक्षित किए जाने वाले बीमारियों से कोई भी शिशु प्रभावित न हो सके।
सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए टीकाकरण का प्रसार महत्वपूर्ण है। एक समय हजारों बच्चों की जान लेने वाली बीमारियां,पोलियो और स्मॉल पॉक्स का उन्मूलन किया जा चुका है एवं प्राथमिक रूप से सुरक्षित व प्रभावी टीकों के कारण अन्य बीमारियां भी उन्मूलन के कगार पर हैं।
यूनिसेफ भारत सरकार एवं अन्य साझेदारों के साथ-साथ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का भी सहयोगी है। यूनिसेफ जीएवीआई को प्रस्तावना विकास,वार्षिक प्रगति प्रतिवेदन एवं क्रियान्वयन के माध्यम से सहयोग करता है। यूनिसेफ,राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह,टीकाकरण एक्शन समूह और पोलियो विशेषज्ञ सलाहकार समूह में नीति विकास का एक सक्रिय सदस्य है।
यूनिसेफ सभी जगह सभी लड़कों और लड़कियों के लिए नियमित टीकाकरण पहुँच में सुधार करके,उनके जीवन को बचा कर,बाल अधिकार की वचनबद्धता को सुनिश्चित करता है। यह अपने सहयोगी एवं साझेदारों के साथ मिलकर सभी भौगोलिक स्थानों,ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में गरीबों,वंचितों,कम पढ़े लिखे समूहों में टीकाकरण की कमियों को समाप्त करने के लिए कार्यरत है। ऐसा करके यह सुनिश्चित करता है कि वह सभी शिशु जो टीकाकरण के लिए आते हैं उन्हें आवश्यक व पर्याप्त टीका के सभी डोज मिल सके। ऐसा करने के लिए सभी स्तर पर आवश्यक संसाधनों जैसे टीकाकरण करने वाले,आपूर्ति,कौशल,मोटिवेशन और सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करना शामिल है।
पूरे विश्व में टीका एवं स्वास्थ्य तंत्र पर लोगों का भरोसा बढ़ाने और बनाए रखने के लिए,टीका के लाभ व संबंधित खतरों एवं साक्ष्य आधारित सूचनाओं के प्रसार से मदद मिल सकती है। यही कारण है कि यूनिसेफ- मीडिया,विशेष करके रेडियो,एवं आस्था आधारित संगठनों व सामुदायिक नेतृत्व एवं प्रभावी व्यक्तियों के साथ साझेदारी करता है ताकि टीकाकरण के लाभ से संबंधित तथ्यात्मक जानकारियों को साझा किया जा सके।
यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि टीकाकरण के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाई जाए और अभिभावकों और देखरेखकर्ताओंके पास टीकाकरण चक्र के बारे में आवश्यक जानकारी उपलब्ध हो,उन्हें यह पता होना चाहिए कि अपने शिशु को टीकाकरण के लिए कब और कहाँ लाना है। टीकाकरण के बीच का अंतराल क्या है,इसकी डोज क्या है और टीकाकरण सत्र को नहीं छोड़ने के क्या महत्व हैं।
टीकाकरण के क्षेत्र में यूनिसेफ के भारतीय तकनीकी सहयोग में नया जुड़ाव मीजल्स-रूबेला टीकाकरण का हुआ है। इस बिमारी के प्रसार में विश्व भर में एक खतरनाक वृद्धिहुई है यहाँ तक कि वैसे देशों में भी जहाँ इसका उन्मूलन हो चुका था या यह उन्मूलन के कगार पर थी। मीजल्स-रूबेला (एमआर) टीकाकरण सुरक्षित और प्रभावी है। फरवरी 2017 से अब तक भारत में 32 राज्यों में 23 करोड़ शिशुओं को एमआर टीका का डोज दिया जा चुका है। इस अभियान में उपयोग किया जाने वाले एमआर वैक्सीन का निर्माण भारत में किया गया है एवं उसे विश्वभर में उपयोग के लिए निर्यात भी किया गया है।
एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार मिशन इंद्रधनुष कार्यक्रम अभियान के बाद संपूर्ण टीकाकरण आच्छादन में 18.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मिशन इंद्रधनुष से प्राप्त अनुभवों को देशभर में टीकाकरण से छूट चुके शिशुओं को टीकाकरण में शामिल करने और संपूर्ण टीकाकरण आच्छादन को 90 प्रतिशत तक स्थाई बनाने के लिए उपयोग किया जा रहा है।
शिशु मृत्यु दर को कम करने वाले पहल में टीकाकरण तक पहुँच को सुधारने के लिए भारत की वचनबद्धता महत्वपूर्ण है और सरकार के उच्च स्तर पर टीकाकरण की प्रधानता दी जाती है। 190जिलों में यह मिशन इंद्रधनुष चलाया गया था। नियमित व प्रभावी टीकाकरण से भारत को प्रभावित करने वाले कई बीमारियों का उन्मूलन किया जा सकता है।