गुजरात में बच्चे
कुपोषण, खराब टीकाकरण कवरेज, घटता लिंगानुपात और बाल विवाह की उच्च व्यापकता बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने की राह में चुनौती बनी हुई है।

चुनौती
यद्यपि गुजरात ने गरीबी में महत्वपूर्ण गिरावट देखी है और आर्थिक विकास में तीसरे स्थान पर है, लेकिन विकास असमान है। जनजातीय, तटीय, रेगिस्तानी और पहाड़ी क्षेत्रों में अभी भी गरीबी का स्तर राज्य के औसत से अधिक है।
जहाँ सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक शिक्षा में जेंडर समानता और सुरक्षित पेयजल तक पहुँच बढ़ी है, वहीं नवजात मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में सुधार की गति धीमी रही है। कुपोषण की उच्च व्यापकता, पूर्ण टीकाकरण की खराब कवरेज, गिरता लिंगानुपात और बाल विवाह गुजरात में हर बच्चे के लिए मानव विकास के परिणामों को सुधारने की राह में चुनौती बना हुआ है।
गुजरात में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर काफी कम हो गयी है, लेकिन नवजात मृत्यु दर अभी भी अधिक है, जो पाँच वर्ष से कम आयु में 63 प्रतिशत बनी हुई है। लड़कों के मुकाबले लड़कियाँ ज्यादा मरती हैं।
विशेष नवजात देखभाल इकाइयों तक पहुँच में सुधार हो रहा है लेकिन मातृ और नवजात देखभाल की गुणवत्ता चिंता का प्रमुख विषय है। दूरदराज के समुदायों, विशेष रूप से आदिवासी, तटीय क्षेत्रों और नमक के मैदानों, साथ ही साथ शहरी झुग्गी बस्तियों और प्रवासी बच्चों में पूर्ण टीकाकरण कवरेज कम रहता है।
हालांकि गुजरात में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में विकास अवरुद्धता का स्तर घट गया है, लेकिन लगभग 39 प्रतिशत बच्चे अभी भी गंभीर रूप से अल्पपोषित हैं या विकास अवरुद्धता से पीड़ित हैं। 2006 से 2016 के बीच शक्तिहीनता या तीव्र कुपोषण बढ़ गया, जिससे बच्चों के जीवित बचे रहने पर जोखिम पैदा हो गया। जन्म के पहले घंटे के भीतर केवल 50 फीसदी बच्चों को ही स्तनपान कराया जाता है।
गुजरात ने 2018-19 के बीच 100 प्रतिशत खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) स्थिति हासिल की लेकिन विभिन्न समुदायों में इस स्थिति को बनाये रखना एक चुनौती है। उदाहरण के लिए, 83.2 प्रतिशत स्कूलों में कार्यात्मक शौचालय हैं, जिनका रखरखाव अभी भी एक चुनौती है। यद्यपि राज्य ने दूरस्थ समुदायों तक में पानी के प्रावधान में अच्छी प्रगति की है, लेकिन विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्रोतों में उच्च माइक्रोबियल और रासायनिक संदूषण, एक बड़ी चुनौती है।
गुजरात ने पहुंच, बुनियादी ढाँचे और नामांकन दर के मोर्चे पर शिक्षा में प्रभावशाली प्रगति की है। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय और एकलव्य आदिवासी विद्यालय जैसे कार्यक्रमों ने शिक्षा को वंचित बच्चों, विशेषकर लड़कियों तक पहुँचाना सुनिश्चित किया है। प्रारंभिक शिक्षा की गुणवत्ता एक चुनौती बनी हुई है।
आदिवासी, तटीय, नमक के मैदानों और पहाड़ी क्षेत्रों में बच्चों का विद्यालय छोड़ना एक मुद्दा है, जबकि कुछ समुदायों में बाल विवाह भी बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों, के विद्यालय छोड़ने में योगदान देता है। एकीकृत बाल विकास सेवा कर्मचारियों, निजी पूर्व-विद्यालयी शिक्षकों की निम्न योग्यता, अपर्याप्त निगरानी प्रणाली और डेटा की अनुपलब्धता के कारण हर बच्चे के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा सुनिश्चित करना एक चुनौती है।
गुजरात में अभी भी बाल विवाह का अत्यधिक प्रचलन है, सबसे समृद्धों के मुकाबले सबसे गरीब परिवारों की चार गुना अधिक लड़कियों की जल्दी शादी हो जाती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के अनुसार, 20-24 वर्ष आयु की अनुमानत: 24.9 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 साल की कानूनी उम्र से पहले हो गयी थी।
बच्चों द्वारा झेले जाने वाले अन्य मुद्दों में बाल श्रम, बच्चों के खिलाफ हिंसा और शहरी झुग्गी बस्तियों में बच्चों के लिए सेवाओं तक पहुँच का अभाव शामिल है।
बच्चों के अधिकारों और कल्याण को आगे बढ़ाना
2018-22 के लिए हमारी कार्यक्रम रणनीतियाँ गुजरात के एसडीजी विजन 2030 के साथ एकरूप हैं, जिसमें यूनिसेफ एक प्रमुख भागीदार रहा है और इसमें योगदान दिया है। गुजरात उन कुछ प्रदेशों में से एक है जिन्होंने मानव विकास के मुद्दों को योजना प्रक्रिया में एकीकृत करने की दिशा में ठोस कदम उठाये हैं। गुजरात में यूनिसेफ निजी क्षेत्र, सरकारी और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों गावी, मेडिकल कॉलेजों और नागरिक समाज संगठनों के साथ काम करता है।
यूनिसेफ ने बाल उत्तरजीविता के लिए जेंडर अंतराल और अन्य असमानताओं को दूर करने के लिए हस्तक्षेपों को प्राथमिकता दी। हम कुशल जन्म परिचारकों तक पहुँच और गुणवत्ता में सुधार, गर्भावस्था से संबंधित गंभीर जटिलताओं की गुणवत्तापूर्ण देखभाल और उपचार, विशेष नवजात देखभाल इकाइयों तक पहुँच और परिणामों का समर्थन करते हैं।
हम प्रमुख पोषण हस्तक्षेपों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए अग्रणी कार्यक्रमों का और दिशानिर्देशों और रणनीतिक योजनाओं के विकास का समर्थन करने के लिए विभिन्न मंत्रालयों के साथ मिलकर काम करते हैं। यूनिसेफ स्तनपान की प्रथाओं में सुधार के लिए मदर्स एब्सॉल्यूट अफेक्शन (एमएए) कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए काम करता है। यूनिसेफ ने गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण में सुधार के लिए एक हस्तक्षेप, एक पूर्ण भोजन स्कीम के परीक्षण का समर्थन किया है।
यूनिसेफ गंभीर तीव्र कुपोषित बच्चों के लिए सुविधा और उनके समुदाय-आधारित प्रबंधन के कार्यान्वयन में सहयोग करता है। हम किशोरियों और महिलाओं के लिए साप्ताहिक आयरन और फोलिक एसिड अनुपूरक (डब्लूआईएफएस) कार्यक्रम की कवरेज और गुणवत्ता में सुधार के लिए भी सहायता देते हैं।
हमारा तकनीकी समर्थन बचपन के शुरुआती पाठ्यक्रम के विकास सहित आंगनवाड़ी प्रशिक्षण केंद्रों की संस्थागत मजबूती पर केंद्रित है।
यूनिसेफ शिक्षा तक पहुँच बनाने में वित्तीय और सामाजिक बाधाओं को कम करने के लिए माता-पिता और बच्चों, दोनों को शामिल करते हुए एकीकृत सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों के निर्माण को प्राथमिकता देता है। माध्यमिक शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने के लिए साक्ष्य आधारित पैरवी की जाती है। हम युवा और समुदाय-आधारित संगठनों की संलग्नता के जरिये विद्यालय से बाहर के बच्चों और अनियमित बच्चों के प्रदेश और जिला स्तर के खाके का समर्थन करते हैं। हम विद्यालय से बाहर के बच्चों तक पहुँचने और विद्यालय में जोखिम वाले बच्चों को रखने के उद्देश्य से लचीले, समावेशी शिक्षा मॉडल का उपयोग करने के लिए प्रदेश के विभिन्न विभागों के साथ सहयोग करते हैं।
एक योग्य बाल संरक्षण कार्यबल के विकास के जरिये हम बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए प्रणालियों को मजबूत बनाने पर काम करते हैं। बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए न्यायपालिका, नागरिक समाज और प्रदेश आयोग के साथ पैरवी का फोकस शोषण, हिंसा और दुरुपयोग से बच्चों के संरक्षण से संबंधित कानून के प्रमुख प्रावधानों के मजबूत कार्यान्वयन पर केंद्रित होता है।
यूनिसेफ परिवार की देखभाल से वंचित बच्चों और परित्यक्त बच्चों के लिए प्रदेश द्वारा संचालित पालक माता-पिता (पालक देखभाल) योजना समेत सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के साथ जुड़ावों का समर्थन करता है। हमारी पैरवी आवासीय देखभाल व्यवस्था में अपनायी गयी और की गयी देखभाल के गुणवत्ता मानकों पर केंद्रित है।
समावेशी सामाजिक नीति देश के कार्यक्रम 2018-22 में पहचाना गया एक नया परिणाम क्षेत्र है। हम एकीकृत सामाजिक नीति और सुरक्षा प्रणालियों की मजबूती को लक्ष्य करते हैं जो बच्चों की आवश्यकता और कमजोरियों पर प्रभावी ढंग से प्रत्युत्तर दे।

सभी कार्यक्रम क्षेत्रों में बच्चों और महिलाओं के अधिकार दिलाने के लिए यूनिसेफ के कार्यक्रमों का क्रॉस-कटिंग हस्तक्षेप जीवन चक्र के दो चरणों - प्रारंभिक बचपन के विकास (0-6 वर्ष) और किशोर सशक्तीकरण (10-19 वर्ष) के आधार पर बनाया गया है।
राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम के तहत, यूनिसेफ विशेष नवजात देखभाल इकाइयों से छुट्टी किये गये समय-पूर्व और जन्म के समय कम वजन वाले शिशुओं के उत्तरजीविता को सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह जिला प्रारंभिक हस्तक्षेप क्लीनिक में विकासात्मक देरी की प्रारंभिक पहचान और देखभाल द्वारा समर्थित है। यूनिसेफ का लक्ष्य प्रेरणा और प्रारंभिक बाल शिक्षा के महत्व पर माता-पिता और देखभाल करने वालों की जागरूकता बढ़ाना है।
गुजरात भूकंप, बाढ़, चक्रवात, स्वाइन फ्लू जैसे प्रकोपों और सूखे के प्रति अतिसंवेदनशील है। यूनिसेफ आपदाओं के दौरान बच्चों को खतरे का खाका बनाने के लिए बाल केंद्रित आपदा जोखिम आकलन को संस्थागत बनाने में प्रदेश का समर्थन करता है। यह आपदा जोखिम में कमी पर हमारे काम का एक मुख्य क्षेत्र है और यह स्वास्थ्य प्रणालियों को और मजबूत करता है, जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल और प्रकोपों के लिए आपातकालीन तैयारी शामिल है। हम विशेषकर तनाव काल के दौरान सुरक्षित जल, स्वच्छता और आरोग्य जैसी प्रथाओं पर समुदायों की जागरूकता, ज्ञान और कौशल बढ़ाकर उनके अधिक लचीला होने का समर्थन करते हैं।