मेरी आवाज़, मेरे अधिकार, मेरी पसंद
15-वर्षीय अल्ताफ का घर उत्तरी मद्रास के मछुआरों की एक बस्ती में है, जो धीरे-धीरे एक बड़े शहर का रूप ले चुकी है।
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15-वर्षीय अल्ताफ का घर उत्तर मद्रास के मछुआरों की एक बस्ती में है, जो धीरे-धीरे एक बड़े शहर का रूप ले चुकी है। समुद्र तट के करीब स्थित यह पुराना इलाका अपनी घनी आबादी, संकरी सड़कों, जर्जर बुनियादी ढांचे, अपराध का उच्च दर, मछली पकड़ने के बंदरगाह, विदेशी राज के समय की इमारतों और माचिस के डिब्बे जैसे घरों के लिए जाना जाता है। ऐसे ही छोटे से एक कमरे के घर में अल्ताफ अपने पिता, मां और छोटे भाई के साथ रहता है।
अल्ताफ का कहना है, “मेरे पिता बेरोज़गार और शराबी हैं, और उन्होंने सूद पर पैसे उधार लिए हैं। मेरी मां वह राशि चुकाने में असमर्थ हैं, इसलिए परिवार को बचाने के लिए मजबूरी में उन्हें एक स्कूल में सफाई कर्मचारी का काम करना पड़ता है। यही मेरी दुर्दशा है।”
सबसे बड़ा बेटा होने के नाते अक्सर उस पर माँ द्वारा परिवार की मदद करने के लिए कुछ अतिरिक्त आय लाने का दबाव डाला जाता है। इस कठिन परिस्थिति के बावजूद, अल्ताफ का दृढ़ विश्वास है कि शिक्षा हर बच्चे का जन्मसिद्ध अधिकार है और सभी बच्चों को स्कूल में होना चाहिए, न कि काम पर।
तेजस्वी और ऊर्जावान छात्र अल्ताफ कहता है, “शिक्षा मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है; मेरा ही क्यों, शिक्षा हर बच्चे का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसलिए मैंने काम करने से इंकार कर दिया और पढ़ाई जारी रखी।” अल्ताफ जय गोपाल गरोड़िया उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, एन्नोर, चेन्नई में 11 वीं कक्षा का छात्र है।
अल्ताफ हमेशा से अपने समुदाय में बच्चों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाता आया है। वह अरुणोदय के चिल्ड्रन्स संगम (क्लब) का एक प्रमुख सदस्य है। अरुणोदय सेंटर फॉर स्ट्रीट एंड वर्किंग चिल्ड्रन, एक गैर सरकारी संगठन है जो अपने क्षेत्र में बाल श्रम को पूरी तरह से मिटाने के लिए काम कर रहा है। इसके अतिरिक्त, अरुणोदय बाल श्रमिकों और सड़क पर रहने वाले ऐसे बच्चों के संरक्षण के लिए काम करता है जो दुर्व्यवहार के शिकार हुए हैं, और उनके परिवारों को मजबूत बनाने के लिए हर संभव सहायता प्रदान करता है।
जब अल्ताफ 10वीं की बोर्ड की परीक्षा के बाद स्कूल लौटा तो उसने देखा कि उसके कुछ दोस्त स्कूल नहीं आए थे। उसने पूछताछ की तो पता चला कि “छुट्टी के दौरान, मेरे दोस्त कार्यालयों और घरों में पानी का कैन पहँचाने वाले डिलीवरी बॉय के रूप में काम करने गए थे। छुट्टी के बाद, वे वापस स्कूल नहीं लौटे, और अपने परिवार की मदद करने के लिए दैनिक मजदूर के रूप में काम करने लगे।” चिल्ड्रन्स संगम (क्लब) के माध्यम से, अल्ताफ ने शिक्षा के महत्व पर अपने दोस्तों और उनके परिवारों से बात करने की पहल की। उसने समझाया कि कैसे बाल श्रम उन बच्चों के भविष्य में कमाई करने की क्षमता को बर्बाद कर सकता है। उसने कक्षा 10 के दो अन्य ड्रॉपआउट् (स्कूल छोड़ने वाले) बच्चों को भी स्कूल लौटने और अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के लिए प्रेरित किया है। आज प्रयासों का नतीजा है कि स्थानीय कंपनियां भी बच्चों को इस तरह के छोटे-मोटे काम करने के लिए नियुक्त नहीं करती हैं।
बड़े होते हुए, अल्ताफ ने कई बार नाटकीय घटनाएं देखी हैं। वह कहता है, “देर रात, अचानक, गली की बत्तियां और बिजली बंद हो जाती थी, और दुकानों के शटर गिरा दिए जाते थे। फिल्मों की तरह, घने अंधेरे में, बोतलों के फेंके जाने की सनसनाहट और टूटने की आवाज़ें आती थीं। जब रोशनी फिर से वापस आती थी, तो इन अप्रिय घटनाओं का एकमात्र सबूत टूटा हुआ कांच और कभी-कभी ज़मीन पर बिखरा हुआ खून होता था। हैरानी तो इस बात की है कि तुरंत ही कोई न कोई ये सब साफ़ करके चला जाता था”
उत्तरी चेन्नई का गैंग वॉर (गिरोहों की लड़ाई), ड्रग्स और गन्दगी के गढ़ के रूप में चित्रण करना शायद गलत नहीं है। अल्ताफ ने अपने साथियों की ओर से एक घटना साझा की, "गली के कोने पर एक बूढ़ी अम्मा तरह-तरह के नाश्ते, जैसे इडली इत्यादि बेचती थी, और बहुत सारे लड़के उस बूढ़ी औरत से छोटे-छोटे पैकेट खरीदते थे। मैं सोचता रहता था कि वे क्या खरीद रहे हैं, और बाद में पता चला कि वे ड्रग्स (नशीली दवाएं) खरीदते थे। बच्चों के क्लब की मदद से, मैं और मेरे दोस्त शिकायत दर्ज करने के लिए पुलिस स्टेशन भी गए, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। तब हमने इस मुद्दे को और ऊपर उठाने का फैसला किया और आई.ए.एस. अधिकारी सुश्री निर्मला के पास एक लिखित याचिका दी। उस समय हमारे पास कोई सबूत नहीं था। अपना पक्ष साबित करने के लिए, हमने एक जासूसी कैमरे का इस्तेमाल करके सबूत एकत्र किए और उनके साथ वीडियो साझा किए। उन्होंने तुरंत इलाके में छापा मारा और उस बूढ़ी औरत की दुकान और आसपास की, कुछ अन्य दुकानों को भी सील कर दिया। अब यह क्षेत्र नशीली दवाओं के दुरुपयोग से संबंधित मुद्दों की रोकथाम के लिए निगरानी में है।
इस मुद्दे के बाद अल्ताफ को उनके समुदाय ने खूब सराहा। उसने अपने पड़ोस के कई बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह सुनिश्चित करता है कि उसके इलाके के सभी बच्चे स्कूल जाते रहें। अरुणोदय के माध्यम से, अल्ताफ ने युवा फैसिलिटेटर (मददकर्ता) कार्यक्रम के तहत, बाल अधिकारों और मुद्दों पर प्रशिक्षण लिया है। उसने बाल विवाह जैसे मुद्दों पर कई नाटकों में भी भाग लिया है। “प्रशिक्षण के बाद, मैंने कई नुक्कड़ नाटकों का आयोजन किया, जहां हमने मासिक धर्म, बाल विवाह और बाल श्रम आदि के बारे में जागरूकता पैदा की है,” अल्ताफ ने कहा।
बहुमुखी प्रतिभा का धनी अल्ताफ एक प्रशिक्षित फ्रिसबी खिलाड़ी है और उसने 'पराई' (दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में बजाया जाने वाला पारंपरिक ड्रम, जो तमिल संस्कृति का एक प्रतीक है) बजाना भी सीखा है। प्राचीन दिनों में, लोगों को संदेश देने के लिए इसका उपयोग कहते थे। अल्ताफ ने कहा, “पराई बजाकर मैं बाल श्रम, बाल विवाह, और मासिक धर्म के मुद्दों पर अपने स्कूल और समुदाय में जागरूकता फैलाता हूं।”
उत्तरी चेन्नई का चरित्र कुछ रहस्यमय है। यह फिल्म-निर्माताओं को आकर्षित करता है, और उसी तरह से, अल्ताफ को भी फिल्मों की दुनिया आकर्षित करती है। वह सिर्फ अपने समुदाय में ही नायक नहीं बनना चाहता अपितु दक्षिण फिल्म उद्योग में भी नायक के रूप में छाना चाहता है, और फिल्म निर्देशक के रूप में सार्थक फिल्में बनाना चाहता है। उसके अनुसार, "मेरा काम अभी खत्म नहीं हुआ है, मैं अपने क्षेत्र के कुछ ही लोगों से बात कर पाया हूं। बड़े स्तर पर दर्शकों तक पहुंचने और बाल अधिकारों और मुद्दों पर संदेश फैलाने के लिए, मैं एक निर्देशक और अभिनेता के रूप में जल्द ही आप सभी को बड़े पर्दे पर नज़र आऊंगा।"
ज़ोखिम भरे कार्यों से सुरक्षित रहने का अधिकार, बाल अधिकारों के कन्वेंशन (सी.आर.सी.) में निहित है, जो इतिहास में सबसे बड़े स्तर पर अपनाई जाने वाली मानवाधिकार संधि है। 1989 में, दुनिया भर के नेताओं ने बच्चों के हित के लिए एक साथ मिलकर, सी.आर.सी. के माध्यम से सहमति व्यक्त की कि लड़कियों और लड़कों को केवल भविष्य के वयस्कों के रूप में ही नहीं अपितु मानवजाति के ऐसे वर्ग के रूप में देखा जाना चाहिए जिनके स्वयं के अनूठे अधिकार हैं। तीस साल बाद भी, अल्ताफ जैसे बच्चों को इन अधिकारों के बारे में ज्ञान है, और वे तब तक लड़ने के लिए तैयार हैं जब तक हर समुदाय का हर बच्चा यह अधिकार प्राप्त न कर ले।