छात्राओं के लिए आशीर्वाद बना सहेली-कक्ष

हम लड़कियों के लिए सुरक्षित कोना है सहेली-कक्ष: कृतिका

By Nisha Dhull, Communication Officer (Hindi), UNICEF
Saheli Kaksh
UNICEF
14 अप्रैल 2025

बिहार प्रदेश के आदर्श रामानन्द मिडिल स्कूल की चौदह वर्षीय छात्रा कृतिका, हाल ही में अपना पुराना स्कूल छोड़कर नए स्कूल में दाखिला लेने वाली है। अपनी कक्षा के बाहर खड़ी कृतिका के मन में उत्साह और बैचेनी के मिले-जुले भाव हैं – जहाँ उन्हें नए स्कूल में जाने का उत्साह है, तो वहीं पुराना स्कूल छोड़ने का दुख भी है।

हालाँकि, उसकी यह बैचेनी पुराने दोस्तों या शिक्षकों से बिछुड़ने की वजह से नहीं हैं। क्योंकि उनके ज़्यादातर सहपाठी तो नए स्कूल में उनके साथ ही दाखिला लेने वाले हैं। इस स्कूल में ऐसा कुछ खास है, जो शायद अब कृतिका को दूसरी जगह न मिले – वो है सुरक्षा।

कृतिका बताती हैं, "यह स्कूल मुझे सुरक्षा देता है. मैं यहाँ सुरक्षित महसूस करती हूँ. ऐसी सुरक्षा का अहसास नए स्कूल में नहीं होगा।"

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UNICEF In Purnea, Bihar, the Saheli Kaksh has become a blessing for girls, a safe haven, building their confidence and feeding their dreams and aspirations.

पहले वो बताने में थोड़ा हिचकिचाती हैं, फिर असमंजस को दूर कर अपनी सहेलियों को खुलकर बताती हैं, "दरअसल मैं इस समय जिस स्कूल में जाने वाली हूँ, वहाँ सहेली कक्ष नहीं है – यानि वो कमरा जो हमारा अपना हो। एक ऐसी जगह जो हमें माहवारी के दिनों में सुरक्षा का अहसास दिलाए।"

लेकिन हमारी जिंदगी भी तो एक सफर की तरह है, जो किसी किसी के लिए नहीं रुकता। कृतिका को अपने जीवन का यह नया पड़ाव भी तय करना ही होगा।

फिर भी उसे यह सोचकर ही सिरहन होने लगती है कि उनके नए स्कूल में सहेली कक्ष नहीं होगा।

Kritika is using the sanitary pad incinerator machine at school.
UNICEF

वो अपनी सहेलियों से कहती है, "शायद मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मेरे नए स्कूल में सहेली कक्ष नहीं है। वहाँ कोई मुझे भरोसा देने वाले नहीं होंगे, सुरक्षा का अहसास नहीं होगा, किसी को मेरी परवाह नहीं होगी। काश! मैं हमेशा के लिए यहाँ रह पाती, लेकिन मुझे जाना तो पड़ेगा ही। यही जीवन है!"

वो एक ऐसी दुनिया की कल्पना करती हैं जहाँ हर स्कूल में एक सहेली कक्ष हो, और जहाँ लड़कियों को अपने सपने पूरे करने के लिए सहूलियतें न छोड़नी पड़ें।

बदलाव की बयार

इस बदलाव का जादू ही है जिससे आदर्श रामानन्द विद्यालय को बिहार स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार (BSVP) प्राप्त हुआ। यह महज एक पुरस्कार नहीं है – बल्कि एक क्रान्ति है। इसमें जल आपूर्ति, शौचालय, हाथ धोना, अपशिष्ट प्रबन्धन और सहेली कक्ष जैसी सुरक्षित जगहों, जैसे कारकों को अहम माना गया है।

आदर्श रामानंद विद्यालय, इन 54 पुरस्कार विजेता स्कूलों में से एक है, जिसे 60 हजार से अधिक विद्यालयों में से, पेयजल, शौचालयों, हाथ धोने, रखरखाव, प्रशिक्षण, व्यवहार परिवर्तन व सामुदायिक जुड़ाव जैसे पैमानों पर परखकर, उत्कृष्टता के लिए चुना गया है…!


 

Students are learning about the rainwater harvesting system at Adarsh Ramanand Middle School in Garhbaneli.
UNICEF Students are learning about the rainwater harvesting system at Adarsh Ramanand Middle School in Garhbaneli.

यूनिसेफ की पहल

कृतिका की दोस्त स्वीटी कुमारी ने चमकती आँखों से बताया, "यूनिसेफ की पहल से सब कुछ बदल गया। सहेली कक्ष, साफ-सुथरे शौचालय, हाथ धोने की जगह - ऐसा लगता है कि अब हम भी किसी बड़े बदलाव का हिस्सा हैं।"

स्वीटी कुमारी कहती हैं, “इससे सब कुछ बदल गया।”

जलापूर्ति, स्वच्छता, स्वास्थ्य समेत BSVP के सात स्तम्भ इस स्कूल को एक किले की तरह सहारा देते हैं। सहेली-कक्ष मानो इसका मुकुट हो, जो आपातकालीन किट और एक बिस्तर के साथ पुरानी सोच को बदलता है।

Hiradan Kumar
UNICEF Hiradan Kumar

हीरादान कुमार ने शर्मीली मुस्कान के साथ बताया: "मुझे इस स्कूल पर गर्व है। अब हम दो शौचालयों से पंद्रह शौचालयों पर पहुँच गए हैं। मुझे ख़ुशी है कि कोई भी समस्या होने पर लड़कियों के पास अब अपना सुरक्षित कोना है। अब उन्हें तबीयत खराब होने पर घर भागने की या हर माह तीन-चार दिन स्कूल से बाहर रहने की जरूरत नहीं पड़ती।”

वहीं, अंकित कुमार बताते हैं, "हर कक्षा के बाहर साफ़ पानी का एक ड्रम रखा हुआ है। अब प्यास की वजह से पढ़ाई में बाधा नहीं आती।"

Students create compost using wet waste for their garden and sort out plastic materials.
UNICEF Students create compost using wet waste for their garden and sort out plastic materials.

छात्रा श्रेया सुहानी कहती हैं: "अब हम बारिश का पानी इकट्ठा करते हैं, गीले कचरे से अपने बागीचे के लिए खाद बनाते हैं, प्लास्टिक का पृथकीकरण करते हैं। इस पुरस्कार ने हमें जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ पृथ्वी की रक्षा करने वाला योद्धा बना दिया है।"

लड़के भी बने क्रांति का हिस्सा

अंकित कुमार, हाथ धोने के नए-नए चमचमाते स्टेशनों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "हम कक्षा में पढ़ने जाने से पहले हाथ धोते हैं और चूँकि अब हर कक्षा के पास पानी के ड्रम रखे होते हैं – तो अब हमें अपनी प्यास बुझाने के लिए भी इंतजार भी नहीं करना पड़ता।"

अंकित कहते हैं, "हम केवल सीख ही नहीं रहे हैं, बल्कि बेहतर तरीके से जी रहे हैं और बेहतर इंसान बनने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।"

Ontari Sudhakar Reddy, a WASH Officer at UNICEF India.
UNICEF Ontari Sudhakar Reddy, a WASH Officer at UNICEF India.

भारत स्थित यूनीसेफ़ कार्यालय में WASH अधिकारी ओंटारी सुधाकर रेड्डी इसे एक आन्दोलन मानते हैं, "हमने बिहार स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार (BSVP) की अवधारणा को योजना में तकनीकी सहायता देकर, पूरे दिल से इसे वास्तविकता बनाने में मदद की है।"

बदली सोच तो, बढ़ा सामुदायिक जुड़ाव 

बिहार में शिक्षा परियोजना परिषद में राज्य परियोजना निदेशक, बी कार्तिकेय धनजी इस बात से सहमति जताते हैं, "इससे जागरूकता बढ़ी है - स्वास्थ्य, स्वच्छता व उपस्थिति के क्षेत्र में, खासतौर पर लड़कियों के लिए।"

बिहार के शिक्षा मंत्री सुनील कुमार कहते हैं, "यूनिसेफ की साझेदारी से इसमें सफलता हासिल हुई। इसके लिए हम उनके आभारी हैं।"

स्कूल के प्रधानाचार्य जलज लोचन समुदाय के इस प्यार को देखकर अभिभूत हैं। “छात्रों के माता-पिता भी साफ-सफाई पर बहुत ध्यान देने लगे हैं। अब वो साबुन से लेकर, पानी के जग आदि जरूरत की सभी चीजें हमें दान करते हैं।”

पूर्णिया निवासी मोतीलाल ठाकुर ने अपनी पोती के जन्मदिन पर आम का पेड़ लगाया। वो कहते हैं, “ये स्कूल हमारा है, हमारे बच्चे इस स्कूल में पढ़ते हैं तो हमारा भी इसके लिए फर्ज बनता है।”

एक अन्य स्थानीय निवासी मधुरेश कहते हैं: “हम स्कूल के लिए योगदान करते रहेंगे, क्योंकि हमें स्कूल और अपने बच्चों की परवाह है और यही हमारे लिए प्रगति है।”

स्कूल से परे, घर-घर पहुंचा बदलाव 

कृतिका की माँ सीता देवी ने इस बदलाव को अपनी आँखों से देखा है। वो मुस्कुराते हुए बताती हैं, अब कक्षा में अनुपस्थिति की वजह सुरज निकलने के बाद सुबह की धुंध की तरह ही गायब हो गई है, और उसकी जगह ख़ुशमिज़ाजी और शिक्षा ने ले ली है। सीता मुस्कुराती हैं, "अब तो लड़के भी संवेदनशीलता को समझते हैं।"

Sita Devi
UNICEF Sita Devi

"पहले कृतिका महीने में तीन-चार दिन स्कूल नहीं जा पाती थी। अब वो हर दिन जाती है, सहेली कक्ष एक वरदान की तरह है। लड़कियाँ अब इन मुद्दों के बारे में बिना शर्म, खुलकर बात करती हैं।"

कृतिका के लिए, BSVP मानो सहेली कक्ष की नब्ज है।

वह एक कोने में खड़ी होकर सहेली कक्ष को आखिरी बार देखते हुए फुसफुसाती हैं, “यह स्कूल सबसे अच्छा है। अगर लड़कियाँ और लड़के सशक्त होंगे, तो पूरा बिहार सशक्त होगा।”

कृतिका, यहाँ से हासिल गरिमा, सुरक्षा, और विश्वास की सीख को, अपनी नई दुनिया में ले जाएंगी। वह मन ही मन, खुद को उस कमरे में आराम करते देख रही हैं।

उनका सपना है कि एक दिन हर स्कूल में ऐसा ही सुरक्षित स्थान मौजूद हो।