गंभीर रूप से कमजोर बच्चों की देखभाल
हर बच्चे को उचित पोषण मुहैया करवाना। यूनिसेफ गंभीर से कमजोर, कुपोषित बच्चों की देखभाल के लिए सामुदायिक और स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए काम कर रहा है।

आज भी वेस्टिंग की समस्या से कई बच्चे पीड़ित हैं। विश्व में वेस्टेड बच्चों की संख्या 51 करोड़ है, और अकेले भारत में ही यह संख्या 20 करोड़ है, जो विश्व में गंभीर रूप से वेस्टेड बच्चों की संख्या का आधा हिस्सा है (भारत में जेएमई, 2018)।
वेस्टिंग यानी लंबाई के अनुसार बच्चे का कम वज़न बढ़ना, पाँच वर्ष तक की आयु के बच्चों की मृत्यु का एक बड़ा कारण बनता है। अक्सर ,इसकी वज़ह भोजन की अत्यधिक कमी या बीमारी होती है।
भारत में वर्ष 2005 के बाद से गंभीर रूप वेस्टेड बच्चों की संख्या 6% से घटकर 5% हुई है, जबकि कमजोर बच्चों का स्तर स्थिर रहा है (वर्ष 2006 में 19.8%, वर्ष 2018 में 17.3%)(NFHS3 2005-06, CNNS 2016-18)।
पांच वर्ष तक की आयु वर्ग में लगभग 21 प्रतिशत बच्चे वेस्टेड कुपोषण से ग्रस्त हैं (इंटरनेशल इंस्टीट्युट फॉर पॉप्युलेशन सांइसेज, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-4 वर्ष 2015-16)। विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों एवं समुदायों पर वेस्टिंग का अत्यधिक प्रकोप है, लेकिन राष्ट्रीय औसत में यह सूचना प्रत्यक्ष नहीं हो पाती। आदिवासी समुदायों के बच्चों में वेस्टिंग कुपोषण में 21.5% की वृद्धि हुई है।
गंभीर रूप से वेस्टेड बच्चों की मृत्यु की संभावना अधिक होती है क्योंकि सही पोषण की कमी से रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। जो जीवित रह पाते हैं उनका पूर्णतः विकास नहीं हो पाता है।
यदि बच्चों का वजन पर्याप्त रूप से बढ़ नहीं पाता या अपर्याप्त भोजन, अथवा डायरिया और श्वास जैसी बीमारियों के कारण उनका वजन कम हो जाता है, तो बच्चे वेस्टेड श्रेणी में आ जाते हैं। गंभीर रूप से वेस्टेड बच्चों की अधिक संख्या और अनुपात, गर्भ के समय महिलाओं के पोषण (खान-पान) की कमी,खराब स्तनपान और खानपान की आदतें, साफ-सफाई और स्वस्थ वातावरण की कमी, गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और भोजन की असुरक्षा दर्शाता है।
भारत को दीर्घकालिक कुपोषण का अधिक हर्जाना भरना पड़ता है। इससे नागरिकों की शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता कम होती है,स्कूल में प्रदर्शन खराब होता है,आय पर दुष्प्रभाव पड़ता है,तथा पोषण-संबंधी दीर्घकालिक बिमारियों का खतरा बढ़ता है - इन सभी कारणों से देश की मानवीय पूँजी का नुकसान होता है।
वर्ष 2014 की वैश्विक पोषण रिपोर्ट के अनुसार सभी प्रकारों के कुपोषण को समाप्त करने में निवेश करना देशकी सरकार के लिए सबसे उत्तम कदमों में से एक है।
प्रमाणित पोषण हस्तक्षेपों में निवेश किए गए प्रत्येक 1 अमेरिकी डॉलर से 16 अमेरिकी डॉलर के लाभ प्राप्त हुए हैं।
भारत सरकार की भागीदारी के साथ यूनिसेफ की बड़े पैमाने पर चल रही योजना का उद्देश्य प्रभावी रूप से इस बोझ को कम करना है और, लाखों महिलाओं तथा बच्चों के जीवन की रक्षा करना और उसे बेहतर बनाना है। इस योजना में पिछडे वर्गों में कुपोषण कम और खत्म करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कुपोषण के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय लक्ष्यों के साथ-साथ स्टंटिंग और वेस्टिंग की दरों को कम करना अत्यंत आवश्यक है।
यूनिसेफ की राष्ट्र योजना (कंट्री प्रोग्राम) 2018-22 के द्वारा हम लगातार जनसंख्या में वेस्टिंग कम करने के भारत सरकार के प्रयासों का सहयोग करते हैं।
इस प्रयास को सार्थक करने के लिए अच्छे परिणाम देने वाले प्रमाणित हस्तक्षेपों को,जो गर्भधारण से दो वर्ष तक की आयु के 1000 दिनों,किशोरियों और महिलाओं पर केंद्रित है,हर तरफ फैलाया जा रहा है। उन क्षेत्रों एवं समुदायों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा जहाँ पोषण संकेतक भारत एवं इसके राज्यों के औसत से कम हैं। बच्चों का भोजन चुनने की प्रथाओं,विशेषकर 6-18 महीने की आयु में पूरक आहार,में सुधार लाना अत्यंत आवश्यक है।
सामाजिक एवं व्यवहारिक परिवर्तन की पहलें वेस्टिंग कुपोषण में सुधार लाने में अहम रोल निभाएंगी। जैसे समुदाय-स्तर पर सलाह-मशवर्रा करना, मीडिया का सहयोग और समर्थन, छोटे बच्चों के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध, पोषण-समृद्ध, एवं कम कीमत के खाद्य पदार्थों के उपयोग को बढ़ावा देना।
चूंकि कुपोषण की शिकार महिलाओं द्वारा कुपोषण से ग्रस्त बच्चों को जन्म देने की अधिक संभावना होती है, यूनिसेफ किशोर लड़कियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पूरक पोषण योजनाओं को बढ़ावा देता है।
प्रमाण आधारित योजना और व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रमों के अलावा वेस्टिंग की समस्या को सुलझाने के लिए,विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के क्षमता के निर्माण,निष्पक्षता और निगरानी तथा मूल्यांकन पर बल दिया जाता है।
यूनिसेफ द्वारा गंभीर विकट कुपोषण (सीवियर एक्यूट मैलन्यूट्रिशन(SAM)) के शिकार बच्चों के लिए, विभिन्न राज्य सरकारों से संयुक्त तौर पर, सुविधा-युक्त इलाज हेतु समर्थन और हिमायत भी की जाती है।
दिल्ली में स्थापित कलावती सरन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल (केएससीएच) एसएएम प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र को तकनीकी सहायता प्रदान करता है और इसे सुचारू रूप से चलाने के लिए उचित दिशा-निर्देश देने के साथ-साथ प्रशिक्षण के माध्यम से समुदाय-आधारित कार्यक्रमों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने के लिए राज्य सरकार को सहयोग करता है। राष्ट्रीय और राज्यों दोनों स्तरों पर इसकी निगरानी की जाती है।