केरल में बच्चे
देश में यहाँ शिशु और नवजात मृत्यु दर और पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में विकास अवरुद्धता की प्रधानता सबसे कम है और विद्यालयों में प्राथमिक नामांकन दर सबसे अधिक है।

चुनौती
केरल भारत के दक्षिण-पश्चिमी मालाबार तट पर स्थित एक राज्य है। 38,863 किलोमीटर में फैला, केरल क्षेत्रफल के हिसाब से तेइसवाँ सबसे बड़ा भारतीय राज्य है। इसकी सीमा उत्तर और उत्तर-पूर्व में कर्नाटक से, पूर्व और दक्षिण में तमिलनाडु से और पश्चिम की ओर लक्षद्वीप सागर से लगती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, 33,387,677 निवासियों के साथ, केरल जनसंख्या के हिसाब से तेरहवाँ सबसे बड़ा भारतीय राज्य है। मलयालम सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और यह प्रदेश की आधिकारिक भाषा भी है।
केरल में भारत में सबसे कम सकारात्मक जनसंख्या वृद्धि दर, उच्चतम मानव विकास सूचकांक, उच्चतम साक्षरता दर, उच्चतम जीवन प्रत्याशा और उच्चतम लिंगानुपात है। राज्य का समुद्र तट 595 किलोमीटर तक फैला हुआ है और राज्य में लगभग 11 लाख लोग मछली उद्योग पर आश्रित हैं जो राज्य की आय में तीन प्रतिशत का योगदान देता है।
केरल सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम को लागू करने वाला शुरुआती प्रदेश है। केरल में 13.3 प्रतिशत कम वजन के साथ जन्म की फैलाव प्रथम विश्व के कई देशों की तुलना में अधिक है। 30 लाख कुँओं पर निर्भर 50 प्रतिशत से अधिक लोगों में डायरिया, पेचिश, हेपेटाइटिस, और टाइफाइड जैसे जल जनित रोगों का प्रकोप एक मुद्दा है, जो सीवर के अभाव से विकट हो गया है।
केरल गरीब समर्थक नीतियों और सबसे वंचित समुदायों में बच्चों और महिलाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की शुरुआत करने वाले भारत में अग्रणी प्रदेशों में से एक है। प्रदेश ने सामाजिक सुरक्षा उपायों, स्वास्थ्य के विस्तार, पोषण, डब्लूएएसएच और शिक्षा प्रणाली और सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसे प्रगतिशील कानून और योजनाएँ शुरू कीं।
यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने केरल को फॉर्मूलों के मुकाबले स्तनपान कराने के प्रभावी प्रोत्साहन के कारण दुनिया के पहले "बेबी-फ्रेंडली प्रदेश" के रूप में नामित किया। केरल में 95 प्रतिशत से अधिक प्रसव अस्पताल में होते हैं और प्रदेश की शिशु मृत्यु दर देश में सबसे कम है। तीसरा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण "संस्थागत प्रसव" के मामले में केरल को पहले स्थान पर रखता है, जहाँ 100 प्रतिशत जन्म चिकित्सा सुविधाओं के साथ होते हैं।
दशकों से, इन सामाजिक नीतियों को सामाजिक क्षेत्र में उच्च सार्वजनिक निवेश और प्रभावी प्रशासनिक संरचनाओं और प्रणालियों के साथ प्रभावी ढंग से लागू किया गया, जिससे प्रभावी योजना और निगरानी की सुविधा हुई। इसने स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा में बच्चों के कल्याण पर काफी प्रभाव डाला। देश में यहाँ शिशु और नवजात मृत्यु दर और पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में विकास अवरुद्धता की व्यापकता सबसे कम है और स्कूलों में प्राथमिक नामांकन दर सबसे अधिक है।
बच्चों के अधिकारों और कल्याण को आगे बढ़ाना
केरल में बच्चों के लिए परिणामों में सुधार लाने और बहुआयामी अभावों को कम करने के लिए पिछले कुछ दशकों में पर्याप्त प्रगति हुई है, केरल के कार्यक्रम प्रयासों के लिए यूनिसेफ प्रदेश कार्यालय सामाजिक समावेश को बढ़ाने और समेकित सामाजिक नीति दृष्टिकोण और व्यापक प्रणालियों को विकसित करके पर्यावरण को सक्षम बनाने पर जोर देता है जो बाल कल्याण पर अधिक प्रभाव के लिए प्रयासों को एकीकृत करते हैं।
यूनिसेफ प्रदेश कार्यालय ने अपनी सामाजिक नीति रणनीति को 'मध्यम आय वाले देश' के संदर्भ में प्रासंगिक रूप में व्यवस्थित किया है, जिसका उद्देश्य प्रदेश सरकारों, संबंधित प्रदेशों के विभागों, प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग और ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में स्थानीय सरकारों के भीतर मौजूदा प्रणालियों को उन्नत करना और बनाना है।
यूनिसेफ सामाजिक नीति के तीन स्तंभों - बच्चों के लिए लोकवित्त, विकेंद्रीकरण और बाल अनुकूल स्थानीय शासन, और कमजोर परिवारों और उनके बच्चों के लिए सामाजिक संरक्षण - के आधार पर काम करता है। इन क्षेत्रों को बाल उत्तरजीविता, बाल विकास, बाल संरक्षण और बाल भागीदारी पर खंडवार हस्तक्षेप के लिए लागू किया जाता है।

सामाजिक नीति कार्यक्रम के तीन स्तंभ मुख्यतः पाँच प्राथमिकताओं पर जो देते हैं :
सबसे कमजोर को लक्ष्यित करने में सुधार, बच्चों के कल्याण पर अधिक प्रभाव और आकस्मिकता समेत प्राथमिकताओं के लिए कुशल और समान खर्च और कमजोरी और जोखिम को घटाने के उद्देश्य से अधिक एकीकृत दृष्टिकोण के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मजबूत करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण।
बाल उत्तरजीविता से परे जाना और शुरुआती बाल शिक्षा तक पहुँच बनाना – मानवीय मानकों सहित समान समावेशी देखभाल वातावरण, कार्यक्रम और नीतियों में बच्चों की विकासात्मक क्षमताओं को प्राप्त करने के लिए गर्भाधान से लेकर स्कूल में प्रवेश की उम्र तक, शुरुआती बचपन के विकास एवं कार्यक्रमों और सभी छोटे बच्चों के लिए वित्तपोषण मॉडल के लिए व्यापक नीति विकसित करना। स्कूल में प्रवेश करने की आयु तक के बच्चे अपनी विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल, स्वास्थ्य, पोषण, संरक्षण और प्रारंभिक शिक्षा सेवाओं सहित आवश्यक सेवाएँ प्राप्त करते हैं।
एक व्यापक नीति और कार्यक्रम जो किशोरों और युवाओं को समाज के उत्पादक और सक्रिय सदस्यों के रूप में उनकी पूरी क्षमता तक पहुँचने में सहायता करता है। समाधानों की पहचान करने और उन्हें बढ़ाने के लिए जन की एजेंसी पर काम करना, सार्वजनिक और निजी भागीदारों के साथ-साथ युवाओं को साथ लाने पर ध्यान केंद्रित करना। किशोरों और युवाओं के लिए सीखने, रोजगार योग्यता और सक्रिय नागरिक सहभागिता के कौशल विकसित करने के लिए अवसर और कार्यक्रम लिंकेज बनाये जाते हैं।
आठवीं से निकलकर नौवीं कक्षा में माध्यमिक शिक्षा के लिए जाने पर ध्यान केंद्रित करना, सहज पारगमन और शैक्षिक गुणवत्ता के उद्देश्य से 12 साल की शिक्षा की निरंतरता के लिए सरकार की योजना को बढ़ाना।
अंतर-खंडीय संमिलन को समर्थन देने और आखिरी मंजिल तक पहुँचने के लिए बाल श्रम (15-18 वर्ष), बाल विवाह और बाल संरक्षण में दूसरी पीढ़ी के मुद्दों के लिए मजबूत निगरानी और शासन प्रणाली स्थापित करना। सामाजिक कल्याण को बढ़ाने के उद्देश्य से बाल संरक्षण प्रणालियों को मजबूत करने के लिए वित्तपोषण और क्षमता विकास रणनीति के मॉडल का पता लगाया जायेगा।
किशोरों और युवाओं की कमजोरी के मुद्दे को नीति-नियंताओं के एजेंडे में सबसे आगे लाने में मदद करके बच्चों द्वारा झेली जा रही असमानताओं, भेदभाव और शोषण का समाधान करने के लिए पैरवी एक आंतरिक प्रक्रिया है। सामाजिक नीति के दृष्टिकोण के माध्यम से इन परिणामों को प्राप्त करने के लिए बच्चों, किशोरों और युवाओं की ओर से बोलने के लिए एक मजबूत स्थिति का होना और उन्हें प्रभावित करने वाले मुद्दों पर अधिक बोलने के लिए सक्षम करना अनिवार्य है। इसलिए, अकादमिक जगत, मीडिया, नागरिक समाज संगठनों, किशोरों और युवाओं के नेतृत्व वाले संगठनों और सुविख्यात हस्तियों या सेलिब्रिटीज के साथ मजबूत साझेदारी का निर्माण किया गया है।