ओडिशा में अभिनव शिक्षण कार्यक्रम के द्वारा आदिवासी बच्चों में खुशियाँ लौट आई।

ओडिशा के आदिवासी समुदाय में बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल जाना छोड़ देते हैं और लगभग 50 % लड़कियों की कम उम्र में शादी हो जाती है|

राधिका श्रीवास्तव
तपोई मालिक लॉकडाउन के दौरान अपने घर से अपनी शिक्षा जारी रख रही है |
UNICEF India
18 सितंबर 2020

14 वर्षीय तपोई मालिक के लिए स्कूल जाना सामान्य बात नहीं है | अनपढ़ माता-पिता की संतान तपोई उनके तीनों बच्चों में सबसे छोटी है | उसके दोनों बड़े भाई - बहन ने हाई स्कूल के पहले ही स्कूल छोड़ दिया | ओडिशा के आदिवासी समुदाय में बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल जाना छोड़ देते हैं और लगभग 50 % लड़कियों की काम उम्र में शादी हो जाती है |

तपोई ने बताया, "मेरे भाई ने स्कूल जाना छोड़ कर मेरे पिता को खेतों में मदद करने लगा, और मेरी बहन ने भी स्कूल छोड़ दिया, उसकी शादी हो गई और वो शहर जा कर काम करने लगी | लेकिन मुझे पढ़ना अच्छा लगता है और मैं इसे जारी रखना चाहती हूँ |

तपोई ओडिशा के नवगढ़ ज़िले में आदिवासी और पिछड़े वर्ग के बच्चों के ले बने आवासीय स्कूल दासपल्ला उच्च प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 9 की छात्रा है | तपोई को गणित, विज्ञान और उड़िया विषय अच्छे लगते हैं |

मार्च के अंत में जब स्कूल बंद हुए और बच्चों को उनके घर भेजा गया तो शुरू में तपोई को ये छुट्टी अच्छी लगी |

 

 

 

"शुरू में तो मुझे लगा कि हम एक महीने के बाद फिर स्कूल चले जाएंगे | लेकिन जब स्कूल लगातार बंद ही रहे, तो मुझे बहुत बुरा लगा | मुझे अपने दोस्तों, अपनी पढाई और अपने टीचर्स की बहुत याद आई | मुझे पढ़ना बहुत पसंद है लेकिन घर पर किसी की मदद न मिल पाने से, मै कुछ नया नहीं सीख सकती थी |" 

फिर भी तापों ने स्कूल में पहले पढ़ाए गए पाठों को दुहराना जारी रखा | उसने बताया, "मैं पहले पढ़ी हुई चीजों को फिर से पढ़ती रही | कुछ घण्टे अपनी कॉपी - किताब के साथ बिताना मेरे लिए बहुत ज़रूरी था |"

घर पर पढ़ती तपोई
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जब तपोई को अपने पडोसी से ये पता चला कि आदिवासी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से मिलने एक टीचर उसके गांव आएंगे तो वो बहुत खुश हुई | टीचर्स का बच्चों के घर जाना और पढ़ाना यूनिसेफ और ओडिशा सरकार के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विभाग द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किये गए और इस महामारी का दौरान वंचित बच्चों को उनके घर पर शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू किये गए 'अल्टरनेटिव मेंटरशिप एंड लर्निंग प्रोग्राम (ALMP)' से ही संभव हो सका है | तपोई कहती है, "जब से सर मेरे गाँव आने लगे हैं, मैंने एक भी क्लास नहीं छोड़ी है | मैं उनसे अपने प्रश्न पूछ सकती हूँ और उनकी मदद से कठिन विषयों को दुहरा सकती हूँ |"

तपोई बड़ी होकर पुलिस में भर्ती होना चाहती है, लेकिन अभी उसका एकमात्र सपना अपनी पढ़ाई जारी रखना है, वो जानती है कि ये एक ऐसा सपना है, जो पूरा होना मुश्किल है, विशेष रूप से उसके समुदाय की लड़कियों के लिए |

वो अपनी कक्षाओं और पढ़ाई पर अधिक समय देने के लिए खूब मेहनत करती है | वो बताती है. "मैं हर दिन सुबह 4 बजे उठ जाती हूँ, अपनी माँ को खाना बनाने, सफाई और घरेलू कामों में मदद करती हूँ | घर का काम पूरा कर के मैं अपनी पढ़ाई करती हूँ |"

तपोई के गाँव की क्लास में 13 बच्चे हैं | इन बच्चों को स्कूल के पाठ्यक्रम के साथ शारीरिक व्यायाम और पौष्टिक भोजन के साथ स्वस्थ रहने, ऑनलाइन सुरक्षा और स्वच्छता के व्यव्हार के विषय में भी बताया जाता है | ओडिशा के 30 ज़िलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के 3 लाख बच्चों तक पहुँचने के लिए 4,700 शिक्षकों को ALMP के अंतर्गत लगाया गया है |

अभी हाल ही में किये गए आकलन में बच्चों में सीखने के मामले में सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं | कक्षा 10 और 12 के लगभग सभी बच्चों (96%) ने कहा कि इन कक्षाओं / सत्रों से उन्हें अपने हिसाब से पढ़ाई जारी रखने में मदद मिली है | छात्र / छात्रों ने यह भी कहा कि इन सत्रों से उन्हें इन शिक्षकों के साथ अच्छा तालमेल बनाने में मदद मिली है और उनका आत्मविश्वास बढ़ा है |

माता-पिता को भी ये प्रयास बहुत उपयोगी लगा और उन्होंने ये विश्वास व्यक्त किया कि इसके कारण उनके बच्चे फिर से स्कूल खुलने पर अपनी कक्षाओं के साथ आसानी से सामंजस्य बैठा सकेंगे | आकलन करने पर ये पता चला कि अधिकतर शिक्षकों को इस प्रयास के उद्देश्य और तरीकों की अच्छी समझ थी यद्यपि बहुतों ने इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी और स्मार्ट फ़ोन का न होना मुख्य चुनौती बताई क्योंकि पठन सामग्री और पाठ आदि व्हाट्सएप्प के माध्यम से ही भेजे जाते हैं |

रायगड़ा के शिक्षक द्विति चंद्र साहू को उनके ज़िले के पाँच गाँवों में बच्चों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी गयी है|
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रायगड़ा के शिक्षक द्विति चंद्र साहू को उनके ज़िले के पाँच गाँवों में बच्चों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी गयी है | "शुरु में सारे बच्चे पढ़ने के लिए नहीं आते थे | मैं फिर सबके घर जा कर उन्हें बुलाता था | हमने सुरक्षा के नियमों का कड़ाई से पालन किया | सभी बच्चों को क्लास शुरू होने के पहले अपने चेहरे पर फेस कवर लगाना और साबुन तथा पानी से हाथ धोना ज़रूरी था |"

द्विति बच्चों को पढ़ाने के लिए छपी हुई पाठन सामग्री के साथ-साथ साबुन, ड्राइंग शीट और कलर्स अपने साथ रखते हैं | वो बताते हैं, "ये सारे बच्चे अपने परिवार में पढ़ाई करने वाली पहली पीढ़ी के हैं | गाँव के बड़े लोगों में लगभग सभी अनपढ़ हैं | लेकिन बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता में भी पढ़ाई को ले कर बहुत उत्साह है |"

सरकार के साथ मिलकर यूनिसेफ छात्र / छात्राओं, अभिभावकों और समुदाय के लोगों के लिए एक संचार योजना बना रही है, जिससे ये सुनिश्चित किया जा सके कि स्कूलों के खुलने पर बच्चे फिर से स्कूल जाएँ |

यूनिसेफ ओडिशा की राज्य प्रमुख मोनिका नीलसन कहती हैं, "जब स्कूल बंद हैं तो ये बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि बच्चों की पढ़ाई जारी रहे | ALMP ओडिशा के वंचित और संवेदनशील (भेद्य) आदिवासी बच्चों तक पहुँचने का सरकार का एक अभिनव प्रयास है | अब हम ALMP के अगले चरण  रहे हैं, जिसमे बच्चों को फिर से स्कूल भेजने के लिए बच्चों और उनके अभिभावकों की मदद की जाएगी |"