बाल विवाह का अंत करना
पूरी दुनिया की एक तिहाई वधुएं भारत में हैं ।

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बाल विवाह बच्चों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है जिससे उनपर हिंसा, शोषण तथा यौन शोषण का खतरा बना रहता है। बाल विवाह लड़कियों और लड़कों दोनों पर असर डालता है, लेकिन इसका प्रभाव लड़कियों पर अधिक पड़ता है।
किसी लड़की या लड़के की शादी 18 साल की उम्र से पहले होना बाल विवाह कहलाता है। बाल विवाह में औपचारिक विवाह तथा अनौपचारिक संबंध भी आते हैं, जहां 18 साल से कम उम्र के बच्चे शादीशुदा जोड़े की तरह रहते हैं।
बाल विवाह, बचपन खत्म कर देता है। बाल विवाह बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और संरक्षण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। बाल विवाह का सीधा असर न केवल लड़कियों पर, बल्कि उनके परिवार और समुदाय पर भी होता हैं।
जिस लड़की की शादी कम उम्र में हो जाती है, उसके स्कूल से निकल जाने की संभावना बढ़ जाती है तथा उसके कमाने और समुदाय में योगदान देने की क्षमता कम हो जाती है। उसे घरेलू हिंसा तथा एचआईवी / एड्स का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है। खुद नाबालिग होते हुए भीउसकी बच्चे पैदा करने की संभावना बढ़ जाती है। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान गंभीर समस्याओं के कारण अक्सर नाबालिग लड़कियों की मृत्यु भी हो जाती हैं।
अनुमानित तौर पर भारत में प्रत्येक वर्ष, 18 साल से कम उम्र में करीब 15 लाख लड़कियों की शादी होती है जिसके कारण भारत में दुनिया की सबसे अधिक बाल वधुओं की संख्या है, जो विश्व की कुल संख्या का तीसरा भाग है। 15 से 19 साल की उम्र की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां शादीशुदा हैं।
हालांकिसाल 2005-2006 से 2015-2016 के दौरान 18 साल से पहले शादी करने वाली लड़कियों की संख्या 47 प्रतिशत से घटकर 27 प्रतिशत रह गई है, पर यह अभी भी अत्याधिक है।
भारत में बाल विवाह में आई कमी की वजह से दुनियाभर में इस प्रथा के चलन में भीगिरावट आई है। यह कमी कई कारणों से हो सकती हैं जैसे अधिकमाताओं का साक्षर होना, लड़कियों को शिक्षा के बेहतर अवसर मिलना, सरकार के सख्त कानून और गांव के लोगों का शहरों की तरफ पलायन। लड़कियों की शिक्षा में तेजी से बढ़ोतरी, नाबालिग लड़कियों के लिए सरकार की योजनाएं और बाल विवाह का गैर कानूनी होने तथा इसके नुकसान परसशक्त सार्वजनिक संदेशइस बदलाव के अन्य कारण हैं।
बाल विवाह, समाज की जड़ों तक फैली बुराई, लैंगिक असमानता और भेदभाव का ज्वलंत उदहारण है। यह आर्थिक और सामाजिक ताकतों की परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया का परिणाम है। जिन समुदायों में बाल विवाह की प्रथा प्रचलित है वहां छोटी उम्र में लड़की की शादी करना उन समुदायों की सामाजिक प्रथा और दृष्टिकोण का हिस्सा है तथा यह लड़कियों के मानवीय अधिकारों की निम्न दशा दर्शाता है।
बाल विवाह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी लोगो को गरीबी की ओर धकेलता है।
जिन लड़कियों और लड़कों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है, उनके पास अपने परिवार की गरीबी दूर करने और देश के सामाजिक व आर्थिक विकास में योगदान देने के लिए कौशल, ज्ञान और नौकरियां पाने की क्षमता कम होती है। जल्दी शादी करने से बच्चे भी जल्दी होते हैं और जीवनकाल में बच्चो कीसंख्या भी ज्यादा होती है, जिससे घरेलू खर्च का बोझ बढ़ता है। बाल विवाह बंद करने के लिए बहुत से देशों में पर्याप्त निवेश की कमी का एक कारण यह भी है कि इस कुप्रथा को जड़ से खत्मकरने के लिए वित्तीय तौर पर उचित तर्क नहीं दिएगए है।
लड़कियों को लड़कों की तुलना में बराबर महत्व न दिए जाने के कारण, यह धारणा है किलड़कियों की शादी करने के अलावा, कोई अन्य वैकल्पिक भूमिकानहीं है। उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे शादी की तैयारी के लिए घर के काम-काज़ करें और घरेलू जिम्मेदारियाँ उठाएँ।
प्रमाण बताते हैं किशोरियों के सशक्तिकरण के लिए,यह अत्यंत महत्त्वूपर्ण है कि उनका विवाह कानूनी उम्र के बाद हो,उनके स्वास्थ्य एवं पोषण में सुधार हो,उन्हें सेकण्डरी स्कूल जाने में सहायता मिले और उनके कौशलों का विकास हो जिससे वे अपनी आर्थिक योग्यता को साकार कर सकें और वह स्वस्थ,उत्पादक और सशक्त व्यस्कों में परिवर्तित हो सकें।
भारत में बाल विवाह की कुप्रथा को खत्म करने के लिए यूनिसेफ इस समस्या की जटिलता और इस प्रथा को मज़बूत बनाने वाले सामाजिक, सांस्कृतिक एवं सरंचनात्मक कारणों को समझता है। यूनिसेफ इंडिया ने सरकार, सहभागी एवं संबंधित भागीदारों के साथ काम करते हुए राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक बाल विवाह रोकथाम एवं किशोर सशक्तिकरण की ‘स्केल-अप’ रणनीतिमें सफलता प्राप्त की है। सबसे महत्वपूर्ण विकास है किशोर सशक्तिकरण एवं बाल विवाह रोकथाम में सेक्टर-आधारित छोटे हस्तक्षेपों से सरकारी कार्यक्रमों पर आधारित बड़े पैमाने वाले डिस्ट्रिक्ट माडलों की तरफ परिवर्तन।
यूनिसेफ और यूएनएफपीए ने ‘ग्लोबल प्रोग्राम टू एक्सीलरेट एक्शन टू एण्ड चाइल्ड मैरिज’ के तहत हाथ मिलाया है, जहां पहली बार स्वास्थ्य, शिक्षा, बाल संरक्षण, पोषण एवं जल व साफ-सफाई पर मौजूदा योजनाओं को एक सिरे में बांधकर बाल विवाह की समस्या को सर्वांगीण रूप से खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है।यह प्रयास एक बच्चे के संपूर्ण जीवनचक्र में बाल विवाह को रोकने के लिए है, खासतौर पर उन गूढ़ नकारात्मक सामाजिक प्रथाओं को चुनौती देकर जो भारत में इस समस्या के पनपने के सबसे बड़े कारण है। यह कार्यक्रम सरकार, सिविल सोसाइटी संगठनों और युवाओं की भागीदारी से काम करता है और बड़े पैमाने पर कारगर युक्तियों को बढ़ावा देता है।
वैश्विक स्तर पर, बाल विवाह, लक्ष्य 5, “लैंगिक समानता तथा महिलाओं और लड़कियों का सशक्तिकरण” के अंतर्गत उद्देश्य 5.3, “सभी नुक्सानदेह प्रथाओं का खात्मा, जैसे बाल विवाह असामयिक विवाह तथा जबरन विवाह और बालिकाओं का खतना”में शामिल है।