माता का स्वास्थ्य
गुणवत्तापूर्ण मातृ स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच में वृद्धि के लिए यूनिसेफ के संगठित कदम
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जब एक मां की बाहों में उसके नवजात शिशु को दिया जाता है तो मां को अपार खुशी महसूस होती है। हर मां को यह खुशी पाने का अधिकार है। लेकिन, भारत में कई गर्भवती महिलाओं के जीवन में यह पल कभी नहीं आता, बल्कि डिलीवरी के वो खुशनुमा पल बेहद ही भयावह पलों में बदल जाते हैं।
मातृ मृत्यु को एक प्रमुख स्वास्थ्य संकेतक माना जाता है। मातृ मृत्यु के प्रत्यक्ष कारणों की जानकारी भली-भांति रूप् से उपलब्ध है, और काफी हद तक इनकी रोकथाम और उपचार किया जा सकता है।
सभी मातृ मृत्युओं के प्रमुख कारण प्रसव से पहले या बाद का ज्यादा रक्तस्राव, प्रसव के बाद होने वाला संक्रमण, गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप (बीपी हाई),प्रसव और असुरक्षित गर्भपात संबंधी कारण हैं।
राष्ट्रीय नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) डेटा की नई रिपोर्ट के अनुसार, 2018-20 में भारत की मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) 97/100,000 जीवित जन्म रही, जो 2014 से 2016 में 130/100,000 जीवित जन्मों से 33 अंक कम है।
2016 की तुलना में 2020 में सालाना 8,580 अतिरिक्त माताओं की जान बचाई गई। कुल अनुमानित वार्षिक मातृ मृत्यु 2016 में 33800 मातृ मृत्यु से घटकर 2020 में 25,220 हो गई।
15 से 19वर्ष की आयु के बीच की लड़कियों की मृत्यु का कारण गर्भावस्था संबंधी समस्याएं हैं। चूंकि, किशोर लड़कियों का शरीर अभी विकसित हो रहा होता है, जिसकी वजह से गर्भ ठहरने पर उन्हें अधिक जोखिम होता है। इसके अलावा बालवधुओं को गर्भावस्था के दौरान अच्छी चिकित्सा देखभाल, गर्भावस्था में प्रसव पूर्व देखभाल, किसी स्वास्थ्य सुविधा में प्रसव करने की संभावना, वयस्क होने पर विवाह करने वाली महिलाओं की बजाय कम होती है।
सभी महिलाओं को गर्भावस्था में प्रसव पूर्व देखभाल, प्रसव के दौरान कुशल देखभाल और प्रसव के बाद के कई सप्ताह तक देखभाल और सहायता की जरूरत होती है। सभी प्रसवों में कुशल स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा सहायता मिलनी चाहिए, क्योंकि समय पर सहयता और उपचार मिलना माँ और बच्चे दोनों के लिए जीवन-मृत्यु का अंतर हो सकता है।
भारत सरकार ने मातृ स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए पहल की है। इससे पिछले दो दशकों में मातृ मृत्यू को रोकने में प्रगति हुई है, वैश्विक स्तर पर गर्भावस्था और प्रसव के कारण मरने वाली महिलाओं-लड़कियों की संख्या में 38% की गिरावट आई है। 2000 में ये मृत्यू 451,000 से घटकर 2017 में 295,000 हो गई है।
हालांकि, जानकारी के अभाव, नीतियों और संसाधनों की उपलब्धता न होने के कारण जीवन रक्षक स्वास्थ्य दखलदांजी और प्रैक्टिस करने के कार्यक्षेत्र कम है। कुछ क्षेत्रों में, अमीर- गरीब का अंतर और शहरी-ग्रामीण का बंटवारा है। स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच अक्सर किसी परिवार या माता की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है।
यूनिसेफ, प्लानिंग, बजट, नीति निर्माण, क्षमता निर्माण, निगरानी और मांग निर्माण में सहायता करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू), महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमडब्ल्यूसीडी), नीति आयोग, और राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करता है। यह मातृ-स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की प्लानिंग, प्लेसमेंट, निगरानी और देखरेख के लिए जिला और ब्लॉक-स्तर पर स्वास्थ्य प्रबंधकों और सुपरवाइज की क्षमताओं का समर्थन करता है। जिसमें अधिक रिस्क वाली गर्भवती महिलाओं और दुर्गम स्थानों पर, असुरक्षित और सामाजिक रूप से वंचित समुदायों की महिलाओं पर ध्यान दिया जा सके।
यूनिसेफ भारत सरकार के साथ मिलकर विभिन्न क्षेत्रों में सहायता प्रदान करता है, जिसमें शामिल हैंः
प्रत्येक मां तक पहुंचना यूनिसेफ, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की नीति का समर्थन करता है, जिसमें प्रत्येक महिला अच्छे प्रसूति गृह में सुरक्षित हाथों में, सम्मान और गरिमा के साथ एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे।
देखभाल की निरंतरताः निरंतर देखभाल से गर्भवती के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार करने के साथ गुणवत्ता पूर्ण मातृ और शिशु स्वास्थ्य सेवाएं दी जाती हैं। इसमें परिवार प्लानिंग, सभी महिलाओं को गर्भावस्था में प्रसव पूर्व देखभाल, प्रसव के दौरान कुशल देखभाल और प्रसव के बाद के कई सप्ताह तक देखभाल शामिल होती है। आवश्यकता पड़ने पर आपात कालीन प्रसूति, नवजात की देखभाल और प्रसव उपरांत, मां और शिशु, दोनों के लिए समय पर देखभाल की जाती है।
प्रसव पूर्व देखभालः सभी गर्भवती माताओं को गर्भधारण की जानकारी होने पर, प्रसव पूर्व देखभाल के लिए शीघ्रातिशीघ्र निकटतम स्वास्थ्य सुविधा में रजिस्ट्रेशन कराना चाहिए, ताकि वे अपने गर्भ की स्वस्थ प्रगति के लिए आश्वस्त हो सकें और ऐसी स्थिति का समय पर पता चल सके, जिनसे उनका एवं उनके बच्चे का स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृवत् अभियान (पीएमएसएमए)% - भारत में मातृ-मृत्यु दर में गिरावट लाने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृवत् अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान के तहत प्रत्येक माह की 9 तारीख को प्रसव पूर्व देखभाल निशुल्क प्रदान की जाती है। इस कार्यक्रम से प्रसव पूर्व देखभाल, उच्च जोखिम वाले गर्भधारण का पता लगाने और उस पर समय से कार्रवाई करने में तेजी आती है।
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके)% इस योजना के तहत महिलाओं और बच्चों के लिए निशुल्क मातृ-सेवाओं, आपात कालीन रेफरल प्रणाली को राष्ट्रव्यापी पैमाने पर ले जाना और मातृ-मृत्यु लेखा परीक्षा और सभी स्तरों पर स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन में सुधार लाना है।
मातृ स्वास्थ्य में सुधार लाने और महिलाओं का जीवन बचाने का वैश्विक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हमें उन महिलाओं तक पहुंचने के ज्यादा प्रयास करने होंगे, जिन्हें ज्यादा जरूरत है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों, शहरी स्लम, गरीब घरों की महिलाएं, किशोर माताएं एवं अल्पसंख्यक, आदिवासी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समूहों की महिलाएं शामिल हैं।