महाराष्ट्र में बच्चे
आर्थिक असमानता अभी भी महाराष्ट्र के बच्चों के भविष्य के आड़े आती है जिससे उनकी जरूरतें पूरी नहीं होतीं, अधिकार नहीं मिलते और उन्हें संभावित रूप से कुंठित कर देती है।
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चुनौती
महाराष्ट्र देश में दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला और तीसरा सबसे अधिक शहरीकृत प्रदेश है। प्रदेश की राजधानी मुंबई भारत की निर्विवाद वित्तीय राजधानी है, फिर भी इसके लगभग 50 प्रतिशत निवासी झुग्गियों में रहते हैं। प्रदेश हर साल देशभर से काम तलाशने वाले हजारों प्रवासियों को आकर्षित करता है। सालाना सकल घरेलू उत्पाद के मामले में प्रदेश सबसे समृद्ध है।
प्रदेश के समृद्ध के बावजूद, बच्चों के विकास परिणामों में असमानताएँ हैं। सबसे अमीर 20 प्रतिशत बच्चों के मुकाबले सबसे गरीब 20 प्रतिशत बच्चे खराब पोषण के कारण दोगुना अधिक अविकसित हैं और अपने पाँचवें जन्मदिन से पहले मर जाते हैं। केलकर समिति अनुमान है कि महाराष्ट्र के जनजातीय क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर प्रदेश के औसत से 60-70 प्रतिशत अधिक है। सबसे गरीब 20 प्रतिशत के मुकाबले सबसे अमीर 20 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं के पास बच्चे के जन्म के समय 1.2 गुना अधिक कुशल परिचारिका मौजूद रहती हैं। समृद्धि के बावजूद, लड़कियों को स्कूली शिक्षा से पीछे रखा जाता है।
महाराष्ट्र में प्रत्येक दस बच्चों में से एक जन्म के समय कम वजन का होता है, और दो साल के कम उम्र के हर तीन बच्चों की माताओं में से एक का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 18.5 से कम होता है, जिससे कम वजन वाले बच्चों के जन्म का खतरा बढ़ जाता है। आदिवासी क्षेत्रों और शहरी मलिन बस्तियों में बच्चों के जीवित रहने के संकेतक बड़ा मुद्दा बने हुए हैं।
बाल विवाह का प्रचलन राष्ट्रीय औसत से कम है और ज्यादातर 16 से 18 वर्ष के बीच की लड़कियों का होता है। हालांकि, क्षेत्रीय भिन्नताएँ जबरदस्त हैं और 17 जिलों में बाल विवाह का प्रचलन प्रदेश के औसत से अधिक है।
दो जिलों, ठाणे और नासिक में बाल श्रमिकों की संख्या अधिक है। मुंबई में केंद्रित मीडिया और मनोरंजन उद्योग में काम करने वाले बच्चों की कमजोर स्थिति और शोषण भी चिंता का प्रमुख विषय है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, प्रदेश में 2014 से 2015 तक बच्चों के खिलाफ अपराधों में 71.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है। यह प्रदेश भारत के साथ ही अन्य देशों से श्रम और व्यापारिक यौन शोषण के लिए तस्करी से लाये जाने वाले बच्चों का भी एक पड़ाव है।
बच्चों के अधिकारों और कल्याण को आगे बढ़ाना
महाराष्ट्र में यूनिसेफ मांग सृजन, सेवाओं की डिलीवरी को मजबूत करने, समानता अंतराल को कम करने, देखभाल की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करता है और शहरी गरीबों के लिए सेवाओं, नवजात विकास और किशोर सशक्तीकरण जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देता है। अभावों को दूर करने के लिए आदिवासी क्षेत्रों और शहरी झुग्गियों में बच्चों तक पहुँचने पर विशेष जोर दिया जाता है।
हमारा काम गर्भाधानपूर्व, प्रसवपूर्व और प्रसव के दौरान की गुणवत्ता और कवरेज में सुधार, और विकसित भ्रूण के नष्ट होने, नवजात मृत्यु और दीर्घकालिक अस्वस्थता के मुद्दों के समाधान के लिए नवजात देखभाल इकाइयों में देखभाल पर निगाह रखना भी है।
यूनिसेफ विशेष नवजात देखभाल इकाइयों में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार का समर्थन करता है, इकाइयों के विस्तार की भी वकालत करता है और कंगारू मदर केयर, जो समयपूर्व -शिशुओं की देखभाल का एक तरीका है, का पैमाना बढ़ाता है। इसके आगे पेशेवर निकायों और स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के संघों को शामिल करके निजी क्षेत्र में भी कंगारू मदर केयर का पैमाना बढ़ाने के लिए तकनीकी सहायता दी जा रही है। कार्यक्रम केवल स्तनपान कराने, देखभाल प्रदाताओं द्वारा साबुन से हाथ धोने और नवजातों की घर-आधारित देखभाल को बढ़ावा देता है।
शहरी झुग्गी बस्तियों में स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का कवरेज बढ़ाने और प्रसवपूर्व देखभाल, प्रसव के दौरान देखभाल और प्रसव बाद के देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिए यूनिसेफ मुंबई, मालेगांव और भिवंडी में नगर निगमों के साथ भी सक्रिय है।
नियमित टीकाकरण को बढ़ावा देना और निमोनिया, दस्त और मलेरिया की रोकथाम और उपचार भी हमारे काम की प्रमुख प्राथमिकताएँ हैं। टीकाकरण कार्यक्रम शहरी झुग्गियों में कवरेज के मुद्दों और कम टीकाकरण कवरेज की जेब पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे कोल्ड चेन और आपूर्ति श्रृंखला प्रणालियों की गुणवत्ता में सुधार होता है।
यूनिसेफ राज्य में कुपोषित बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। वर्तमान फोकस क्षमता निर्माण पर सहयोगात्मक कार्रवाई और गंभीर घातक कुपोषण (एसएएम) केस शीट के मानकीकरण के जरिये एसएएम बच्चों की संख्या कम करने पर है। पोषण कार्यक्रम सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण में उत्कृष्टता के केंद्र स्थापित करके और प्रणाली के भीतर परिवर्तन के अगुवा बनाकर और उन्हें विकसित करके प्रणाली को मजबूत करने पर केंद्रित है। नवाचार (इनोवेशन) के लिए साझेदारी को मजबूत करने, निर्णय लेने के लिए बेहतर डेटा और बच्चों, महिलाओं और किशोरों के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को प्रभावित करने के उद्देश्य से बजटीय दक्षता में सुधार करने को प्राथमिकता दी जाती है। यूनिसेफ किशोरियों और महिलाओं को लक्ष्यित करने वाले साप्ताहिक आयरन ऐंड फॉलिक एसिड सप्लीमेंटेशन (डब्लूआईएफएस) कार्यक्रम की कवरेज में सुधार करने की पैरवी करता है।
यूनिसेफ विशेष रूप से वंचित समुदायों के लिए शिक्षा कार्यक्रमों के प्रभावी समन्वय, योजना, कार्यान्वयन और निगरानी के लिए विभिन्न विभागों का समर्थन करता है। जोर शिक्षा कार्यक्रमों के नीतिगत विकास, विश्लेषण और कार्यान्वयन के लिए बजट सहित डेटा के प्रभावी उपयोग के लिए साक्ष्य और क्षमता निर्माण पर है।
हमारे शिक्षा कार्यक्रम का ध्यान प्राथमिक से लेकर माध्यमिक शिक्षा तक बच्चों के उन्नयन में सुधार करने के लिए प्रदेश का समर्थन करने के साथ ही साथ वंचित बच्चों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ मिलना सुनिश्चित करने के लिए प्रणाली का समर्थन करने पर है। नागरिक समाज संगठनों की साझेदारी में, यह कार्यक्रम शिक्षा प्रशासन में सुधार, शिक्षकों की क्षमता बढ़ाने, शिक्षक सहायता प्रणालियों को सक्रिय करने और उन्नत रूप से सीखने एवं और कौशल विकास में बच्चों की भागीदारी के लिए प्रौद्योगिकी और ऑनलाइन प्रणालियों के उपयोग का विस्तार कर रहा है। कार्यक्रम बच्चों की शिक्षा, विशेष रूप से लड़कियों की शिक्षा को पारंपरिक रूप से रोकने वाले सामाजिक मानदंडों को प्रभावित करने के लिए सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार दृष्टिकोणों में निवेश करता है।
प्रदेश के विभागों और सामुदायिक स्तर के संस्थानों के साथ निकट सहयोग में, यह कार्यक्रम लड़कियों के महत्व से जुड़े सामाजिक मानदंडों को प्रभावित करने, उनकी शिक्षा को प्रोत्साहित करने और बाल विवाह रोकने का प्रयास करने वाले मौजूदा नकदी हस्तांतरण योजनाओं की डिजाइन और कार्यान्वयन को मजबूत करने के लिए काम करता है।

यूनिसेफ खुले में शौच के उन्मूलन, बच्चों के मल के सुरक्षित निपटान से जुड़े व्यवहारगत परिवर्तन और प्रथाओं, देखभाल करने वालों द्वारा महत्वपूर्ण समय पर साबुन से हाथ धोने, और सुरक्षित जल के संचालन और भंडारण प्रथाओं की योजनाओं के लिए क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करके शौचालयों के स्थायी उपयोग को प्राथमिकता देता है।
पूरे प्रदेश में हम जलवायु परिवर्तन में वृद्धि और पानी के अभाव को देखते हुए एकीकृत पेयजल संरक्षा और सुरक्षा योजनाओं के कार्यान्वयन का समर्थन कर रहे हैं। यह कार्यक्रम प्रदेश के विभागों को स्वच्छ भारत स्वच्छ विद्यालय, स्वच्छ भारत सर्वत्र और कायकल्प जैसी प्रमुख योजनाओं के तहत सुधार योजनाओं को विकसित और कार्यान्वित करने के लिए सहायता प्रदान करता है।
कार्यक्रम योग्य बाल संरक्षण कार्यबल के विकास में योगदान देकर प्रणाली को मजबूत करता है और जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड और बाल कल्याण समितियों समेत बाल सुरक्षा सांविधिक निकायों के प्रदर्शन पर डेटा और साक्ष्य बनाने में सहायता करता है। बजटीय प्रशासन और जवाबदेही में सुधार के लिए लोकवित्त तंत्र को मजबूत करने के लिए समर्थन दिया जाता है। यूनिसेफ उन प्रणालियों को मजबूत करता है जो परिवार या सामुदायिक देखभाल की पैरवी करके बच्चों को संस्थागत रूप देने से रोकती हैं।
स्वास्थ्य पर ध्यान जिला प्रारंभिक हस्तक्षेप क्लीनिकों में विकासात्मक विलंब और देखभाल की शुरुआती पहचान के जरिये विशेष नवजात देखभाल इकाइयों से डिस्चार्ज किये गये समय-पूर्व और जन्म के समय कम वजन वाले शिशुओं के जीवन को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
यूनिसेफ यह सुनिश्चित करने के लिए काम करता है कि नवजातों और शिशुओं के विकास, संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास को बढ़ावा देने के लिए उन्हें शुरुआती वर्षों में पर्याप्त पोषण के अलावा गुणवत्तापूर्ण देखभाल, प्रेरणा और उत्तरदायी बातचीत मिले। हमारी पैरवी प्रदेश प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा नीति की स्थापना करने और बच्चों में स्कूल जाने की तैयारी सुनिश्चित करने के लिए इसके कार्यान्वयन को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।