मध्य प्रदेश में बच्चे
प्रदेश में बच्चों का उत्तरजीविता बनाये रखने में जेंडर असमानता चिंता का एक प्रमुख विषय है। हर बच्चे को जीवित रहने, पनपने और पूरी क्षमता हासिल करने का अधिकार है।

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चुनौती
क्षेत्रफल के हिसाब से मध्य प्रदेश दूसरा सबसे बड़ा प्रदेश है और सबसे बड़ी जनजातीय आबादी (जनगणना 2011 के अनुसार 21.09 प्रतिशत जनसंख्या) का घर भी है। 60 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जनजाति के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और गरीबी रेखा से नीचे हैं। नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस), 2015 के अनुसार, प्रदेश राष्ट्रीय नवजात मृत्यु दर में तीसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता प्रदेश है, जो राष्ट्रीय दरों में 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान करता है।
बाल उत्तरजीविता में जेंडर असमानता चिंता का एक प्रमुख विषय है, जो लड़कियों के लिए पाँच वर्ष से कम उम्र की उच्च मृत्यु दर में दिखता है, यह विशेष नवजात देखभाल इकाइयों में लड़कों के मुकाबले कम महिला नवजात शिशुओं के भर्ती होने से भी दिखता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -4) के अनुसार, मध्य प्रदेश में 42 प्रतिशत की उच्च विकास अवरुद्धता दर है, यानी पाँच वर्ष से कम आयु के 33 लाख बच्चों का विकास अवरुद्ध है और पाँच वर्ष से कम आयु के 27 लाख बच्चे शक्तिहीन हो गये हैं। पिछले एक दशक में प्रदेश में कम वज़न के बच्चों में 29 प्रतिशत की कमी देखी गयी है। 2018 में, प्रदेश ने कुपोषण के सभी स्वरूपों के निराकरण के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन के साथ जोड़कर पोषण मुद्दे के निराकरण के लिए मुहिम के तौर पर पोषण अभियान के कार्यान्वयन की शुरुआत की।
यद्यपि प्राथमिक विद्यालय के लिए नामांकन की दर अधिक है, लेकिन सीखने की उपलब्धि के सर्वेक्षण बताते हैं कि प्रारंभिक कक्षाओं में सीखने का स्तर खराब है, और यह अनुमान है कि 4,50,952 बच्चे विद्यालय नहीं जाते, जिनमें अधिकांश वंचित परिवारों से हैं। उच्च प्राथमिक स्तर पर विद्यालय छोड़ने की वार्षिक औसत दर 7.6 प्रतिशत है, जो 5.6 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से अधिक है (स्रोत: शिक्षा के लिए जिला सूचना प्रणाली 2016-2017)।
बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों में प्रदेश भारत में तीसरे स्थान पर है और 2016 के दौरान बच्चों के खिलाफ बलात्कार के मामलों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या दर्ज करने के साथ ही जेंडर आधारित हिंसा बढ़ रही है (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, 2016)। 2011 की जनगणना के अनुसार 5-14 वर्ष की आयु के लगभग 7,00,000 बच्चे बाल श्रमिक हैं।
लगभग हर तीसरे घर में शौचालय नहीं है, प्रदेश में 5 करोड़ से अधिक लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं। प्रदेश सूखा समेत प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से असुरक्षित है। बुंदेलखंड क्षेत्र विकट सूखे की दृष्टि से सबसे अधिक असुरक्षित है।
हालांकि, प्रदेश अपने सेवा वितरण तंत्र में समावेशी समानता और स्थायी गुणवत्ता सुनिश्चित करने में चुनौतियों का सामना करता है। मध्य प्रदेश सामाजिक सशक्तीकरण, आर्थिक सशक्तीकरण और सामाजिक न्याय की तीन-तरफा रणनीति अपनाकर असमानताओं और वंचित आबादी के शोषण के उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करते हुए 2030 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
बच्चों के अधिकारों और कल्याण को सुनिश्चित करना
यूनिसेफ रणनीतिक बदलाव लाने और प्रदेश के विकास लक्ष्यों की दिशा में तेजी लाने और प्रगति को बनाये रखने में मदद करने के लिए प्रदेश सरकार के सहयोग से काम करता है। यह मध्य प्रदेश में बच्चों को अधिकार दिलाने के लिए विभिन्न विभागों, जिला प्रशासन, निर्वाचित प्रतिनिधियों, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ), मीडिया, महिलाओं, युवाओं और बच्चों के संगठनों के साथ काम करता है। सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में मीडिया के साथ एक मजबूत साझेदारी है।
सरकार और नागरिक समाज के साथ साझेदारी में स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, बुद्धिमत्तापूर्ण जल प्रबंधन, स्वच्छता, विकेन्द्रीकृत योजना के सफल मॉडल विकसित किये गये हैं और वे बच्चों और महिलाओं के लिए बेहतर परिणाम दे रहे हैं।
यूनिसेफ बच्चों के और महिलाओं के अधिकारों को दिलाने के लिए जीवन चक्र के दो चरणों - प्रारंभिक बचपन विकास (3-6 वर्ष) और किशोर सशक्तीकरण (10-19 वर्ष) पर जोर देता है।
नवजात मृत्यु दर की उच्च दर को देखते हुए, यूनिसेफ जन्म के समय कुशल परिचारक, प्रसव कक्षों और विशेष नवजात देखभाल इकाइयों, दोनों में प्रसव के दौरान और नवजात देखभाल की गुणवत्ता में सुधार, समय-पूर्व प्रसव और कम वजन के शिशुओं के जन्म के प्रबंधन पर जोर देता है।
शुरुआती बाल शिक्षा को मजबूत करने के लिए, यूनिसेफ ने एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) के तहत पूर्व-प्राथमिक शिक्षा गतिविधियों को लागू करने के लिए पाठ्यक्रम और सहायक सामग्री विकसित की है। शुरुआती बाल शिक्षा देने एवं गुणवत्ता बढ़ाने और विद्यालय जाने की तैयारी सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत क्षमता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
बच्चों की भागीदारी को प्राथमिकता दी जाती है, और बच्चों के मुद्दों की पैरवी करने के लिए युवाओं के समूहों को जुटाने को समर्थन दिया जाता है। यूनिसेफ बाल अधिकारों के मुद्दों को चर्चा का बिंदु बनाने में मदद के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ मिलकर काम करता है और बाल संरक्षण नीतियों और कानून के कार्यान्वयन को मजबूत करने के लिए बाल संरक्षण कार्यबल की क्षमताओं का निर्माण करता है।
प्रदेश गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की मांग करने के लिए समुदाय को प्रेरित करने और स्वास्थ्य-लाभकारी व्यवहारों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की क्षमताओं को मजबूत करने के लिए सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (एसबीसीसी) प्रशिक्षण में निवेश करता है।
यूनिसेफ आपदा जोखिम में कमी को मुख्य धारा में लाने की पैरवी करता है और छोटे बच्चों और महिलाओं के लिए लक्ष्यित आवश्यक पोषण सेवाएँ प्रदान करने के लिए सूखे की अवधि के दौरान मानक संचालन प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है।