स्वास्थ्य
हम माताओं, नवजात शिशुओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य के लिए समुदाय, सरकार और अपने भागीदारों के साथ मिल कर काम करते हैं |

- में उपलब्ध:
- English
- हिंदी
रोके जा सकने वाले मातृत्व, नवजात एवं बाल मृत्यु को खत्म करना
भारत में प्रतिदिन 68,500 बच्चे जन्म लेते हैं, जो दुनिया में जन्म लेने वाले बच्चों का पांचवा हिस्सा है। प्रत्येक मिनट इनमें से एक नवजात शिशु की मौत हो जाती है।
प्रसव का दिन मां और नवजात शिशु दोनों के लिए सबसे अधिक जोखिम भरा दिन होता है क्योंकि लगभग 40 प्रतिशत नवजात शिशु मृत्यु और आधी मातृत्व मृत्यु प्रसव के दिन ही होती है। इस तरह की मौतों की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक महिला का किसी स्वास्थ्य सुविधा में और कुशल प्रसव परिचर द्वारा प्रसव कराया जाना सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में प्रतिवर्ष लगभग पांच मिलियन नवजात शिशुओं का जन्म घर पर होता है।
सम्मिलित प्रयासों से जन्म के शुरुआती 28 दिनों में होने वाली नवजात मृत्यु वैश्विक स्तर पर होने वाली मौतों के एक तिहाई से काफी कम होकर वैश्विक पर नवजात मृत्यु की एक चौथाई से भी कम हो गई है।
स्वास्थ्य सुविधाओं में दस में से प्रसव कराने वाली महिलाओं की संख्या दस में से छह से बढ़कर दस में से आठ होने से नवजात शिशु मौतों में प्रतिमाह एक मिलियन की कमी आई है और प्रसव के दौरान माताओं की मौतों में 10,000 की कमी आई है। समय पूर्व प्रसव (39.5 प्रतिशत), नवजात संक्रमण (17 प्रतिशत), बर्थ अस्फ़िक्सिया (31 प्रतिशत) और जन्मजात विकृतियाँ (4 प्रतिशत) नवजात मृत्यु के प्रमुख कारण हैं | अच्छी गुणवत्ता की देखभाल स्वास्थ्य सुविधा में प्रसव सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है क्योंकि सभी मातृत्व मौतों की लगभग 46 प्रतिशत और नवजात शिशुओं की मौतों की लगभग 40 प्रतिशत मौतें प्रसव के बाद पहले 24 घंटे के भीतर होती हैं।
भारत ने बाल मृत्यु दर की कमी में पर्याप्त प्रगति दर्शाई है और अब लड़कियों पर विशेष ध्यान देते हुए नवजात शिशुओं और सबसे अधिक वंचित बच्चों तक पहुंच बनाने की आवश्यकता है। नवजात शिशुओं की मृत्यु कम करने में उतनी महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली जितनी पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु रोकने में मिली है। भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौतें वैश्विक मौतों की लगभग एक-तिहाई होती है नवजात शिशुओं की एक-चौथाई मौतें होती हैं।
भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा बड़ा देश है जहां शिशु लड़कों की तुलना में शिशु लड़कियों की मृत्यु अधिक होती है। वर्तमान में बच्चों के जीवित रहने में लिंग अंतर 11 प्रतिशत है। यह भेदभाव लड़कियों के प्रतिकूल लिंगानुपात के साथ जन्म से पहले ही शुरू हो जाता है, जिसका अर्थ है लड़कियों की तुलना में अधिक लड़के पैदा होते हैं, और यह अंतर बच्चे के जीवन के सभी चरणों में जारी रहता है। आंकड़े लड़कों की तुलना में लड़कियों को अस्पताल में कम भर्ती कराए जाने का सामुदायिक दृष्टिकोण दर्शाते हैं,जिससे पता चलता है कि माता-पिता कभी-कभी नवजात लड़की पर कम ध्यान देते हैं। अकेले 2017 में लड़कों की तुलना में 150,000 कम लड़कियों को SNCU में भर्ती कराया गया था।
अधिकांश नवजात शिशुओं की मृत्यु ऐसी वज़हों से होती हैं जिनका हम रोकथाम करना अथवा उपचार करना जानते हैं: इनमें शामिल हैं समय से पहले अथवा प्रसव और जन्म के दौरान होने वाली जटिलताएं, और सेप्सिस, निमोनिया, टेटनस और दस्त जैसे संक्रमण।

नवजात मौतों की सरल और कम खर्चीले हस्तक्षेपों से रोकथाम की जा सकती है। तथापि, पांच वर्ष से कम आयु में मरने वाले बच्चों में से लगभग 70 प्रतिशत बच्चे जन्म के बाद पहले महीने में ही मर जाते हैं। नवजात शिशुओं की मृत्यु की रोकथाम करने के लिए समाज के सभी स्तरों पर- परिवारों और समुदायों से लेकर स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों और सरकारों तक, ठोस कार्रवाई किए जाने की जरूरत है।
यूनिसेफ प्रत्येक बच्चे और माता-पिता तक पहुंच बनाना सुनिश्चित करने के लिए देश भर में अपने मातृत्व, शिशु और नवजात स्वास्थ्य कार्यक्रमों को लागू करने के लिए भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है।
प्रत्येक बच्चे तक पहुंचना
प्रत्येक बालिका के लिए स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक समान पहुंच की जरूरत के लिए, इस अंतर को पाटने के लिए हमें अपने संयुक्त प्रयासों को और तेज करने की आवश्यकता है। यहां तक कि MDG लक्ष्यों को पूरा करने वाले राज्यों में भी निरंतर लैंगिक असमानताएं देखी जा सकती हैं।
भारत में पांच वर्ष से कम उम्र में लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में 8.3 प्रतिशत अधिक है | वैश्विक स्तर पर यह लड़कों की तुलना में १४ प्रतिशत अधिक है (स्रोत: UNIGME child survival Report 2019).
समाधान
प्रसव के आसपास का समय मातृत्व और नवजात जटिलताओं के निवारण और प्रबंधन में महत्वपूर्ण है, यदि ऐसा न किया जाए तो यह घातक हो सकता है।
मातृत्व, बाल और नवजात स्वास्थ्य के इर्दगिर्द यूनिसेफ प्रोग्रामिंग देखभाल में असमानताएं कम करना चाहती है, स्वास्थ्य प्रणालियां मजबूत और लचीली एवं जोखिम-सूचित नियोजन प्रणाली को शामिल करने का प्रयास करती है। सबसे वंचित समुदायों में निवेश और प्रतिबद्ध नेतृत्व के संयोजन से लाखों छूटी हुई महिलाओं और उनके बच्चों को बचाया जा सकता है।
यूनिसेफ बच्चों और महिलाओं के लिए सेवाओं और गुणवत्ता देखभाल में सुधार के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और अन्य भागीदारों के साथ मिलकर काम करता है। सबसे कमजोर वर्गों पर ध्यान केंद्रित कर, यूनिसेफ इन बच्चों और माताओं को स्वास्थ्य की जानकारी और देखरेख प्राप्त न होने के कारणों का निराकरण करता है। नवजात लड़कियों की देखभाल के संबंध में व्यवहार और प्रथाएं बदलने पर विशेष जोर देने के साथ असमानताओं का निराकरण करने के कार्यक्रम शुरू किए जा रहे हैं।

गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य सुविधाओं में अच्छी गुणवत्ता और सम्मान जनक देखभाल तक पहुंच सुनिश्चित करके सामुदायिक हस्तक्षेपों में मदद दी जाती है, जिसमें माता और बच्चे को घर पर नवजात देखरेख प्रदान की जाती है।
यूनिसेफ नियोजन, बजट, नीति निर्माण, क्षमता निर्माण, निगरानी और मांग उत्पन्न करने के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, महिला और बाल विकास मंत्रालय, नीति आयोग और राज्य सरकारों के साथ काम करता है।