बाल अधिकारों की हिमायत

सुबह5 बजे से ही इलाके में हलचल शुरू हो जाती है, मछली पकड़ने के लिए कांटे डाले जाते हैं, युवाओं में सेल्फी का दौर चलता है और पुरुष एवं महिलाएं टहलने निकलते हैं।

गौरी सुंदरराजन
Adolescents like Kowsalya are fully aware of their rights and are willing to advocate, voice and fight until every child, in every community, attain them.
UNICEF India/2019/Sundararajan
25 सितंबर 2019

उत्तर चेन्नई की 19 वर्षीय कौशल्‍या का कहना है,"मेरे इलाके में आने पर आपको, जाल में फंसी मछलियां और उसको खींचते मछुआरे, खेलते हुए बच्‍चे, गाना गाते युवा, तली जा रही मछलियां, छोटी-बड़ी लहरें और गलियों में कैरम खेलते युवा दिखाई देंगे। जहाज निर्माण स्‍थल, समुद्री तट रेखा और नावों का झुरमुट, सब एक सुंदर चित्र जैसा दिखता है गवर्नमेंट आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, टोंडियारपेट, चेन्‍नई,में अर्थशास्‍त्र के प्रथम वर्ष में पढ़ने वाली इस छोटे कद काठीवाली लड़की को करीब-करीब हर कोई जानता है।

सुबह5 बजे से ही इलाके में हलचल शुरू हो जाती है, मछली पकड़ने के लिए कांटे डाले जाते हैं, युवाओं में सेल्फी का दौर चलता है और पुरुष एवं महिलाएं टहलने निकलते हैं। ग्राहकों को लुभाने के लिए अपनी मछलियों की तारीफों के पुल बांधती मछुआरिनों की तीखी आवाज़ें कानों में पड़ती है। एन्‍नोर और उसके आसपास के गाँव सालों से मछलियां पकड़ने के लिए इस छोटे से नदी पर निर्भर हैं। चेन्नई के ऊँची  समुद्री लहरों और एक राजमार्ग के बीच स्थित इस छोटे से गाँव और कौशल्या की कहानी दोनों ही संघर्ष भरे हैं। वाले

सुबह5 बजे से ही इलाके में हलचल शुरू हो जाती है, मछली पकड़ने के लिए कांटे डाले जाते हैं, युवाओं में सेल्फी का दौर चलता है और पुरुष एवं महिलाएं टहलने निकलते हैं। ग्राहकों को लुभाने के लिए अपनी मछलियों की तारीफों के पुल बांधती मछुआरिनों की तीखी आवाज़े कानों में पड़ती है।
यूनिसेफ इंडिया/2019/सुंदरराजन
सुबह5 बजे से ही इलाके में हलचल शुरू हो जाती है, मछली पकड़ने के लिए कांटे डाले जाते हैं, युवाओं में सेल्फी का दौर चलता है और पुरुष एवं महिलाएं टहलने निकलते हैं। ग्राहकों को लुभाने के लिए अपनी मछलियों की तारीफों के पुल बांधती मछुआरिनों की तीखी आवाज़े कानों में पड़ती है।

कौशल्या, जो अपने चाचा-चाची के साथ रहती है, कहती है, “जब मैं छोटी थी तभी मेरे माता-पिता गुजर गए मेरे पिता रिक्शा चलाते थे, लेकिन काफी दुखी रहते थे , माँ के गुजरने के कुछ सालों बाद वो भी चल बसे । मुझे तो अपने माता-पिता के चेहरे भी याद नहीं। हमेशा सोचती हूं कि अगर वे जीवित होते तो शायद मेरी जिंदगी भी कुछ अलग होती” पिता की मृत्यु  के बाद वह और उसके दो भाई-बहन पड़ोस में अपनी चाची के घर में रहने लगे। हालांकि उसके चाचा-चाची के पाँच बच्चे थे और जीवन यापन के साधन बहुत कम थे, मगर उनका दिल बड़ा था।

इसके बावजूद कि , कौशल्या के चाचा शराबी हैं। इतने बड़े परिवार की जरूरतें पूरी करने की सारी जिम्मेदारी कौशल्या की चाची पर थी। उन्होंने गुजर-बसर के लिए घर के सामने खाने-पीने की छोटी सी दुकान खोली। भावुक मन कौशल्‍या ने बताया कि , "मैं कॉलेज के बाद या छुट्टियों में स्टाल की व्‍यवस्‍था करके अपनी चाची का हाथ बंटाती हूं, उन्‍होंने मेरे और मेरे भाई-बहनों के लिए सब कुछ किया है।"

भावुक मन से कौशल्‍या कहती है कि , "कॉलेज के बाद या छुट्टियों में मैं स्टाल की व्‍यवस्‍था करने में अपनी चाची का हाथ बंटाती हूं, उन्‍होंने मेरे और मेरे भाई-बहनों के लिए सब कुछ किया है।"
यूनिसेफ इंडिया/2019/सुंदरराजन
भावुक मन से कौशल्‍या कहती है कि , "कॉलेज के बाद या छुट्टियों में मैं स्टाल की व्‍यवस्‍था करने में अपनी चाची का हाथ बंटाती हूं, उन्‍होंने मेरे और मेरे भाई-बहनों के लिए सब कुछ किया है।"

बचपन से ही कौशल्या साहसी और अपने अधिकारों के प्रति आवाज उठाने वाली  रही है। उसका साहस और ज्ञान दोनों ही और बढ़ा जब उसने अरुणोदय के चिल्ड्रन संगम (क्लब) की बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया । अरुणोदय सेंटर फॉर स्ट्रीट एंड वर्किंग चिल्ड्रन, एक गैर-सरकारी संगठन है जो इस इलाके में बच्चों को हर प्रकार के बाल श्रम से बचाने की दिशा में काम करता है, एवं दुर्व्यवहार के शिकार बाल श्रमिकों और सड़क पर रहने वाले बच्चों का बचाव और अपने परिवारों के सहयोग में उनकी सहायता करता है।

कौशल्‍या ने बताया कि , "इन बैठकों के माध्यम से मुझे अनेक बाल अधिकारों की समस्याओं जैसे बाल विवाह और बाल श्रम के बारे में जानकारी मिली ।"

कौशल्‍या का कहना है कि , "इन मुद्दों की मुझे इन बैठकों में जाने से पहले भी जानकारी थी। इसके अलावा हमें पहले से ही बाल विवाह के दुष्प्रभावों के बारे में पता था। क्योंकि यह मेरी चचेरी बहन के साथ हो चुका है । मेरी चाची की बेटी रेवती ने सिर्फ 15 वर्ष की आयु में भाग कर शादी कर ली । अगले ही वर्ष वो माँ बन गई। अब, तीन बच्चों की माँ 24 वर्षीय चचेरी बहन को इसका पछतावा है और वो असहाय महसूस करती है; उसके जीवन में बहुत कम विकल्प बचे हैं।"

परिवार ने हालात देखते हुए, कौशल्या की बहन, संगीता की शादी जब वो सिर्फ 16 वर्ष की थी। "मेरी चचेरी बहन की दुर्दशा ने मुझे झकझोर दिया था। मेरी बहन को रेवती की तरह दर्दनाक अनुभव से न गुजरना पड़े, इसके लिए मैंने अपनी और अपनी बहन आवाज उठाने का साहस जुटाया। मुझे डर था कि जल्‍द ही मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही होगा। मैंने तर्क दिया और अपने चाचा और चाची को समझाया कि कम उम्र में शादी करना गलत क्यों था। लड़की अभी बच्ची ही होती है और उसके जल्‍द गर्भवती होने पर शारीरिक रूप से खतरा बढ़ जाता है। गर्भावस्था या प्रसव में जटिलताओं का खतरा अधिक हो जाता है। इसके अलावा कम उम्र की लड़की का उसके जीवन के कई फैसलों पर कोई नियंत्रण नहीं होता और वह घरेलू हिंसा की शिकार हो जाती है। इसके अलावा, शादी के बाद ऐसी लड़कियां स्कूल से निकल जाती हैं।'' कौशल्या के तर्कों का उसके परिवार पर असर पड़ा और उसकी बहन की शादी रोक दी गई। संगीता ने 8वीं कक्षा के बाद ही स्कूल छोड़ दिया था लेकिन जीविकोपार्जन के लिए उसने सिलाई सीखा । वह अब 21 वर्ष की है और एक माह पहले उसकी शादी हुई है;वह अपनी चाची के खाने के स्टाल पर हाथ बंटाती है।

परिवार ने कौशल्या की बहन, संगीता, की शादी तब करनी चाही जब वो सिर्फ 16 वर्ष की थी।कौशल्‍या ने अपनी और अपने  बहन के लिए साहस जुटाया और अपनी बहन की शादी रुकवा दी।
यूनिसेफ इंडिया/2019/सुंदरराजन
परिवार ने कौशल्या की बहन, संगीता, की शादी तब करनी चाही जब वो सिर्फ 16 वर्ष की थी।कौशल्‍या ने अपनी और अपने बहन के लिए साहस जुटाया और अपनी बहन की शादी रुकवा दी।

कौशल्‍या और उसके बाल क्लब के साथियों ने मिलकर समुदाय में एक और बाल विवाह नाकाम किया। पहले लड़की के माता-पिता को समझाया, लेकिन जब वह सफल नहीं हुए, तो पुलिस और चाइल्डलाइन हेल्पलाइन को फोन करने की धमकी दी! बच्चों के अधिकारों के लिए खड़े होने से समुदाय में कौशल्या की घर-घर चर्चा होने लगी। अब उसको हर कोई पहचानने लगा, बाल अधिकारों से जुड़े मामले पर सहकर्मी और समुदाय के लोग सलाह लेने कौशल्‍या के पास आने लगे हैं।

कौशल्या ने एक और उदाहरण दिया - “मुझे पता चला कि इलाके में एक 15 वर्षीय लड़की शादी के बाद मेरे पड़ोस में रहने आई थी। लड़की से बात करने पर मैंने जाना कि वो पढ़ना चाहती थी लेकिन उस पर शादी के लिए दबाव डाला गया। अरुणोदय की सहायता से, हम पुलिस तक पहुंचे और शादी रुकवा दी ।”

कौशल्या ने बताया, “अकेले काम करने के मुकाबले समूह के हिस्से के रूप में समर्थन करना अधिक प्रभावी होता है। जब हम समूह में आवाज उठाते हैं, तो लोग हमारी बात गंभीरता से समझते हैं, यह ऐसा ही एक उदाहरण है। इसी तरह बच्चों के क्लब को काफी मान्‍यता मिली है।''

“क्लब बनने के बाद से, मेरे इलाके के बच्चे बाल श्रम नियंत्रित करने में सक्षम हुए हैं। क्लब का अध्यक्ष होने के बाद मेरे अंदर आत्मविश्वास जागा है और अपनी बात रखने का बल मिला है समय के साथ, पारस्परिक संबंधों और संचार, दोनों में मेरे कौशल बढ़े हैं।युवा कौशल्‍या जो  अब अन्‍य मामलों में भी अरुणोदय की सक्रिय स्वयंसेवक है गर्व से कहती है कि अपने काम से, मुझे न सिर्फ अपने साथियों, बल्कि बड़ों और समुदाय के नेताओं का भी सम्मान मिला है ”, । कौशल्या बदलाव लाने के प्रति काफी उत्साहित उत्‍साही है।

“अकेले काम करने के मुकाबले समूह में सहयोग करना अधिक प्रभावी है। जब हम समूह में आवाज उठाते हैं, तो लोग हमारी बात गंभीरता से समझते हैं।''
यूनिसेफ इंडिया/2019/सुंदरराजन
“अकेले काम करने के मुकाबले समूह में सहयोग करना अधिक प्रभावी है। जब हम समूह में आवाज उठाते हैं, तो लोग हमारी बात गंभीरता से समझते हैं।''

चेन्नई मेंपानी की कमी होना, कोई नई बात नहीं है। पानी के टैंकरों के पीछे भागना निवासियों की मजबूरी है, रिश्वत देनी पड़ती है और रात में भी टैंकरों से थोड़ा पानी लेने के लिए घंटों इंतेजार करना पड़ता है जैसे ही पानी का टैंकर आता है, महिलाएं, पुरुष, बच्चे प्लास्टिक के रंग-बिरंगे बर्तन लेकर दौड़ते हैं। इसकेकारण कई लड़कियों को स्कूल और कॉलेजछोड़ कर घर में रुकना पड़ता है। कौशल्या इस बात से भी परेशान है , “हमारे इलाके में पानी की दिक्‍कत होने के साथ ही पानी की आपूर्ति भी अनियमित थी। इसलिए कई लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया , ताकि टैंकर के आने पर वे पानी ले सकें। इस बात ने मुझे बहुत परेशान किया। अपने साथियों के साथ मैंने एक साहसिक कदम उठाने का फैसला किया, हमने अपने इलाके में तमिलनाडु स्लम क्लीयरेंस बोर्ड (TNSCB) को याचिका दी। अपनी याचिका में, हमने पानी आपूर्ति का समय बदलने और शाम को किसी निश्चित समय पर पानी के टैंकर के आने का अनुरोध किया, जिससे कि लड़कियां सुबह स्कूल और कॉलेज जा सकें। इस मामले को गंभीरता से लिया गया और अधिकारियों ने पानी के टैंकर का समय बदल दिया।”कौशल्‍या ने बताया कि, अब वो सुनिश्चित करती है कि किसी भी लड़की का स्‍कूल और कॉलेज न छूटने पाए।   

“हमारे इलाके में पानी की दिक्‍कत होने के साथ ही पानी की आपूर्ति भी अनियमित थी। इसलिए कई लड़कियों ने स्कूल  छोड़ दिया , ताकि टैंकर के आने पर वे पानी ले सकें। इस बात ने मुझे बहुत परेशान किया। अपने साथियों के साथ मैंने एक साहसिक कदम उठाने का फैसला किया, हमने याचिका दी। अपनी याचिका में, हमने पानी आपूर्ति का समय बदलने और शाम को किसी निश्चित समय पर पानी के टैंकर के आगमन करने का अनुरोध किया, ताकि लड़कियां स्कूल और कॉलेज जा सकें। मामला गंभीरता से लिया गया और अधिकारियों ने पानी के टैंकर का समय बदल दिया।”
यूनिसेफ इंडिया/2019/सुंदरराजन
“हमारे इलाके में पानी की दिक्‍कत होने के साथ ही पानी की आपूर्ति भी अनियमित थी। इसलिए कई लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया , ताकि टैंकर के आने पर वे पानी ले सकें। इस बात ने मुझे बहुत परेशान किया। अपने साथियों के साथ मैंने एक साहसिक कदम उठाने का फैसला किया, हमने याचिका दी। अपनी याचिका में, हमने पानी आपूर्ति का समय बदलने और शाम को किसी निश्चित समय पर पानी के टैंकर के आगमन करने का अनुरोध किया, ताकि लड़कियां स्कूल और कॉलेज जा सकें। मामला गंभीरता से लिया गया और अधिकारियों ने पानी के टैंकर का समय बदल दिया।”

अपनी आर्थिक स्थिति के बावजूदकौशल्या के चाचा-चाची, उसका समर्थन करते हैं और वह जो भी करती है उस पर गौरान्वित हैं। उसकी इच्‍छा अब वकील बनने की है।

नृत्‍य पसंद करने वाली कौशल्‍या कहती है कि ,स्कूल के बाद भी में अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती हूँ मेरा परिवार मुझे सहयोग कर रहा था साथ था लेकिन हमारे पास साधन नहीं थे। मेरी कॉलेज शिक्षा के लिए अरुणोदय मेरा सहयोग कर रहा था और मैं वकील बनने के लिए दृढ़संकल्प हूं। मैं बच्चों के अधिकारों से जुड़े मामलों पर काम करना जारी रखना चाहती हूं।”“मैं अपनी इच्छा से विवाह करुँगी, अगर मुझे कोई सही व्यक्ति मिला। कोई आदमी मेरी आजादी पर लगाम नहीं लगा सकता है । मैं अपनी पसंद अनुसार काम करते रहना चाहती हूं।”

 

कौशल्‍या जैसी अनेक  युवतियां हैं जो अब अपने अधिकारों के प्रति पूरी तरह जागरूक हैं, और जब तक हर समुदाय के हर बच्‍चे को ये न मिलें, तब तकवह उनके लिए समर्थन करने, आवाज उठाने और लड़ने के लिए तैयार हैं।
यूनिसेफ इंडिया/2019/सुंदरराजन
कौशल्‍या जैसी अनेक युवतियां हैं जो अब अपने अधिकारों के प्रति पूरी तरह जागरूक हैं, और जब तक हर समुदाय के हर बच्‍चे को ये न मिलें, तब तकवह उनके लिए समर्थन करने, आवाज उठाने और लड़ने के लिए तैयार हैं।
UNICEF India