“टेक पू टू द लू”
“टेक पू टू द लू” अभियान से जुड़ें और खुले में शौच मुक्त देश के लिए मदद की शपथ लें |

- में उपलब्ध:
- English
- हिंदी
और गन्दगी अब बर्दाश्त नहीं
भारत में लगभग 60 करोड़ लोग, जो कि जनसँख्या का 48 % भाग हैं, खुले में शौच के लिए जाते हैं | जिसका मतलब है कि यह जनसँख्या प्रतिदिन लगभग 6.5 करोड़ किलो का मल-त्याग खुले में करते हैं |
अगर इसी प्रकार ये खुले में मल-त्याग जारी रहा तो इसकी दुर्गन्ध से जानलेवा संक्रमण, बीमारियाँ और महामारियों से नहीं बचा जा सकता |
इसके बारे में सोचिये | आधी जनसँख्या शौचालय का प्रयोग नहीं करती जबकि शेष आधी जनसँख्या ने इसे अपना लिया है | हम भारत को इसी रूप में स्वीकार करते हैं | हम इस मुद्दे से जुड़े हुए है और इस सहमति का हिस्सा हैं |
तो अगर आपको ये बुरा लगता है तो केवल नाक बंद कर आगे बढ़ कर इसे दबाइए नहीं |
“टेक पू टू द लू” (चलें शौचालय की ओर) अभियान से जुड़ें और मल-मुक्त देश के लिए मदद की शपथ लें |
मुख्य तथ्य

- वैश्विक रूप से भारत में सबसे ज्यादा, लगभग 60 करोड़ लोग, जो कि जनसँख्या का 48 % भाग हैं, खुले में शौच के लिए जाते हैं | भारत में लगभग आधी जनसँख्या शौचालय का उपयोग करती है|
- लगभग 44 प्रतिशत माताओं द्वारा बच्चों का मल खुले में फेंकने के कारण, सूक्ष्म जीवाणुओं (बैक्टीरिया, वायरस, अमीबा) से पानी के प्रदूषित होने का खतरा बहुत अधिक है जिससे बच्चों में डायरिया होता है |
- बार-बार होने वाले डायरिया से कमजोर होने वाले बच्चे कुपोषण, बौनापन (स्टंटिंग), और मौका पा कर होने वाले न्यूमोनिया के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं | भारत में लगभग 48 प्रतिशत बच्चे कुछ हद्द तक कुपोषण का शिकार होते हैं | डायरिया और कृमि संक्रमण दो प्रमुख स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं हैं जो कि स्कूल जाने की उम्र वाले बच्चों को प्रभावित करते हैं और उनकी सीखने की क्षमता को प्रभावित करते हैं |
- यद्यपि भारत के गावों में स्वच्छता की स्थिति में सुधर हो रहा है लेकिन अभी ये नाकाफी है | सबसे गरीब 20 प्रतिशत लोगों में खुले में शौच सर्वव्यापी है |
- अगर घरों में शौचालय न हो, तो महिलाओं और लड़कियों को शर्म और निजी सम्मान तथा सुरक्षा खोने का खतरा बना रहता है | किसी और द्वारा देखे जाने से बचने के लिए वे इसके लिए रात होने का इंतज़ार करती हैं |
- ग्रामीण जनसँख्या का बहुत छोटा भाग बेहतर स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग करता है | (ऐसी सुविधा जिसमे सुनिश्चित किया जाता है कि मानव मल को मानव संपर्क से स्वच्छतापूर्वक अलग रखा जाये)
हम मिलकर भारत को बदल सकते हैं
भारत का नागरिक होने के नाते हमें इसके समृद्ध और विविधतापूर्ण संस्कृति पर गर्व है, हमारी भूमि खुबसूरत है | यद्यपि 62 करोड़ से अधिक लोग शौचालत का उपयोग नहीं करते और लगभग इतने ही लोग उनका उपयोग करते हैं | इसके परिणामस्वरूप हमारा वातावरण अस्वीकार्य रूप से प्रदूषित हो रहा है | इसी कारण मैंने इस विषय पर अपने अन्य युवा साथियों के साथ मिलकर आवाज़ उठाने और इस पर कदम उठाने का निश्चय किया है | हम चाहते हैं कि हमारे भाई-बहन एक स्वच्छ देश में एक स्वस्थ व्यक्ति के रूप में जीवित रहें, बड़े हों और विकास करें | हम आपसे मदद के लिए तत्काल प्रार्थना करते हैं | हम मिलकर भारत को बदल सकते हैं |
अभियान से जुड़ें
“टेक पू टू द लू” (चलें शौचालय की ओर) अभियान से जुड़ें और मल-मुक्त देश के लिए मदद की शपथ लें |