भारत में बच्चे
भारत में पिछले दो दशकों में हुई बढ़ोतरी ने वैश्विक मानव विकास में अभूतपूर्व रूप से योगदान दिया है

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भारत में पिछले दो दशकों में हुए विकास ने वैश्विक मानव विकास (global human development) में सराहनीय योगदान दिया है। भारत में गरीबी में 21 प्रतिशत के स्तर तक आ गई है, साथ ही साथ नवजात शिशुओं की मृत्यु दर भी आधी हो गयी है। 80 प्रतिशत महिलाओं का प्रसव अब स्वास्थ्य केन्द्रों में सुरक्षित वातावरण एवं परिवेश में हो रहा है।यही नहीं पहले की तुलना में अब स्कूल ना जाने वाले बच्चों की संख्या में 20 लाख की कमी आई है अर्थात अब स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की संख्या में भी काफी कमी आयी है ।
ये आंकड़े एक ऐसे देश के लिए विशेष उपलब्धि है, जो विश्व की आबादी का लगभग छठा हिस्सा है । अभी भी बहुत सारी चुनौतियाँ हैं क्योंकि भारत की अब तक की आर्थिक उपलब्धियों से अभी तक जीवन स्तर में कोई विशेष सुधार या सभी की सामान जीवन शैली, विशेष रूप से महिलाओं एवं बच्चों के सन्दर्भ में, देखने को नहीं मिल रहा ।
उच्च श्रेणी का कुपोषण (38.4 प्रतिशत शारीरिक रूप से विकृत बच्चे), ख़राब शैक्षणिक परिणाम (ग्रेड तीन के केवल42.5 प्रतिशत बच्चे ग्रेड एक की पढाई पढ़ सकने में सक्षम हैं) के साथ ही साथ टीका निरोधक रोग और बाल श्रम भी फ़िलहाल देखने को मिल रहा है ।
विश्वपटल पर भारत एक मात्र ऐसा बड़ा देश है जहाँ लड़कों की तुलना में लड़कियों की बाल-मृत्यु दर अधिक है और जन्म के समय हर 1000 लड़कों की अनुपात में 900 लड़कियों विपरीत लिंगानुपात है। वैश्विक स्तर पर लड़कियों की तुलना में 7 प्रतिशत अधिक लड़कों की मृत्यु 5वर्ष से कम आयु में ही हो जाती है जबकि भारत में यह विपरीत पाया जाता है | यहाँ 5 वर्ष से कम आयु में 11 प्रतिशत से अधिक लड़कियों की मृत्यु हो जाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों, मलिन बस्तियों और शहरों में गरीबी रेखा के नीचे की आबादी, अनुसूचित जातियों, जनजातीयसमुदायों और अन्य वंचित आबादी के बच्चे गरीबी, कुपोषण, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव,बाल विवाह, विद्यालय में खराब उपस्थिति, ख़राब शैक्षणिक परिणाम, स्वच्छता, स्वच्छ पेयजल की कमी आदि से संबंधित कई अभावों से पीड़ित हैं। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक बच्चों की मृत्यु 5 वर्ष से पूर्व होजाती है।

भारत में अन्य देशों की तुलना में दुनिया की सबसे ज्यादा किशोर आबादीजो वर्तमान में 253 मिलियन है और यहाँ हर पांचवां व्यक्ति 10 से 19 साल के बीच है।
गौरतलब है कि भारत को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से इस बात का लाभ मिल सकता है, यदि यहाँ बड़ी संख्या में मौजूद किशोरआबादी सुरक्षित, स्वस्थ, शिक्षित हो और देश के विकास को गति देने के लिए सूचना और कौशल से परिपूर्ण हो । हालांकि, किशोर लड़कियां विशेष रूप से खराब पोषण, बाल-विवाह और कम उम्र में बच्चे पैदा करने की वजह से कमजोर हो जाती हैं, जिससे उनकी एक सशक्त एवंस्वस्थ जीवन जीने की क्षमता प्रभावित होती है,फलस्वरूप आने वाली पीढ़ी भी प्रभावित होती हैं ।
लड़कियों के सन्दर्भ में भारत में बाल विवाह का आंकड़ा भी सबसे अधिक है। दक्षिण एशियाके आठ देशों (बांग्लादेश, नेपाल और अफगानिस्तान के बाद) में भारत बाल विवाह के प्रचलन के मामले में चौथे स्थान पर है।
54 प्रतिशत यानी आधे से अधिक एवं 30 प्रतिशत लड़कों की तुलना में किशोरियां एनीमिया (खून की कमी) से ग्रसित होती हैं, साथ ही बॉडी मास इंडेक्स में कमी,बाल विवाह और किशोर अवस्था में गर्भधारण की चुनौतियां की वजह से किशोरियों की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति भी प्रभावित होती है।
भारत महिलाओं के ऊपर हिंसा के मामले में भी अग्रणी देश है जहाँ 60-90 प्रतिशत लड़कियां सार्वजनिक स्थानों/ स्थलों पर यौन उत्पीड़न / हिंसा की शिकार होती हैं।देश के विकास दर को यहाँ घटित होने वाली लगभग सभी आपदाएं जैसे कि बाढ़ , सूखा, भूकंप, शरणार्थियों का आगमन तथा जलवायु परिवर्तन आदि प्रभावित करती हैं।