महिलाओं का पोषण
भारत में महिलाओं के असंतुलित आहार के कारण में पौषणिक ज़रूरतें खराब होती है।

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भारत में माँ बनने-योग्य आयु की एक चौथाई महिलाएँ कुपोषित है और उनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 18.5 किलोग्राम/एमसे कम है(स्रोत: NFHS 4 2015-16 )।यह सभी को पता है कि एक कुपोषित माँ अवश्य ही एक कमजोर बच्चे को जन्म देती है, और कुपोषण चक्र पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है।
कुपोषित लड़कियों में कुपोषित मां बनने की संभावना अधिक होती है, जिससे कम वजन के बच्चों को जन्म देने की स्थिति अधिक होती हैं, और इस प्रकार कुपोषण का चक्र पीढ़ीयों तक बना रहता है।
इस चक्र को कम आयु की माताओं द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है, विशेष रूप से उन किशोरियोंद्वारा, जो पूर्ण तौर पर शारीरिक रूप से विकसित होने से पहले बच्चे पैदा करना शुरू करती हैं। जब माताएँ गर्भावस्था के बीच बहुत कम अंतराल रखती हैं और अनेक बच्चे पैदा करती है, तो यह शरीर में पोषण की कमी को बढ़ाता है जो कि आगे बच्चों में भी जारी रहता है।
भ्रूण का सही तौर पर विकसित नहीं हो पाना,अधिकतर माँ द्वारा गर्भधारण करनेके पहले और गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान पर्याप्त तौर पर पोषण नहीं लेने के कारण होता है।
भारतीय बच्चों में कुपोषण स्तर के स्थिर बने रहने का मुख्य कारण महिलाओं के गर्भधारण से पहले और गर्भावस्था के दौरान उनका कुपोषित होना ठीक करने में अभी तक प्राप्त असफलता है।
इसके परिणामस्वरूप,महिलाओं के पोषण — गर्भावस्था के पहले,दौरान और बाद में — को अब यूनिसेफ इंडिया की पोषण कार्यक्रम-निर्माण में एक विशेष ध्यान क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है।यूनिसेफ का लक्ष्य अब वैश्विक और राष्ट्रीय सहमति पर आधारित महिलाओं के लिए पांच आवश्यक पोषण के प्रयासों की व्याप्ति को और अधिक व्यापक बनाने पर ध्यान केंद्रित करना है।
माताओं के लिए पांच आवश्यक पोषण प्रयासों में शामिल हैं:
1. घरों में खाए जाने वाले भोजन की मात्रा और पोषक स्तर में सुधार करना
इसमें मुख्य रूप से शामिल हैं, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से आम प्रकार के घरेलू खाद्य राशन तक पहुंच में सुधार करना, एकीकृत बाल विकास सेवा योजना के तहत पूरक खाद्य पदार्थों तक पहुंच प्रदान करना, और पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से स्थानीय आहार, उत्पादन और घरेलू व्यवहार में सुधार हेतु जानकारी प्रदान करना।
2. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और एनीमिया को रोकना
यह आयरन फोलिक एसिड सप्लीमेंट,कृमि-निवारण, गर्भ धारण के पहले और बाद में फोलिक एसिड पूरक प्रदान करने, आयोडीन-युक्त नमक के लिए सर्वगत पहुँच,मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में मलेरिया की रोकथाम और उपचार, गर्भावस्था के दौरान तंबाकू उत्पादों का उपयोग न करने हेतु जानकारी और सहायता,तथा मातृत्व के लिए जरूरी कैल्शियम व विटामिन ए सप्लीमेंट तक पहुंच प्रदान करता है।
3. बुनियादी पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं तक महिलाओं की पहुँच बढ़ाना
यह गर्भावस्था के शुरुआत में ही पंजीकरण और प्रसवपूर्व जांच की गुणवत्ता प्रदान करके, गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ाने की निगरानी, जांच और जोखिम वाली माताओं की विशेष देखभाल के साथप्रदान किया जाता है।
4. पानी और स्वच्छतासंबंधी शिक्षा तथा सुविधाओं तक पहुंच में सुधार
यहसफाई और स्वच्छता (साथ ही मासिक धर्म संबंधी साफ-सफाई) के बारे में शिक्षा प्रदान करके किया जाता है।
5. महिलाओं को बहुत जल्दी, बार-बार और कम अंतराल में गर्भधारण को रोकने के लिए सशक्त बनाना।
इसमें शामिल है जागरूकता के माध्यम से 18 वर्ष की आयु में/इसके बाद विवाह सुनिश्चित करने और एक लड़की को कम से कम माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के लिए प्रोत्साहित करना;परिवार नियोजन, प्रजनन स्वास्थ्य सूचना, प्रोत्साहन और सेवाओं के माध्यम सेपहली गर्भावस्था और पुनः गर्भधारण में देरी करके मातृत्व क्षमता में होने वाली कमी को रोकना;महिलाओं के लिए मातृत्व अधिकार के हिस्से के रूप में सामुदायिक सहायता प्रणाली, कौशल विकास, आर्थिक सशक्तीकरण को भी बढ़ावा देना;साथ ही महिलाओं को निर्णय लेने, आत्मविश्वास निर्माण, कौशल विकास और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए सामुदायिक सहायता प्रणाली प्रदान करना।
भारतीय बच्चों के लिए पोषण कार्यक्रमों का ध्यान मुख्य रूप से प्रसव के बाद के समय पर बच्चोंऔर उनके खानपान पर केंद्रित है।यह सभी को मालूम है कि दो वर्ष तक की आयु वाले बच्चों में ठीक से शारीरिक विकास के नहीं होने के 50 प्रतिशत मामले,बच्चे के गर्भ में होने के दौरान और गर्भावस्था से पहले, बच्चे की मां के खराब पोषण स्तर के कारण होते है।
वर्ष 2018-20 में पोषण अभियान के राष्ट्रव्यापी शुरुआत के परिणामस्वरूप, वर्ष 2018 में किशोरों और महिलाओं के पोषण को नए सिरे से राजनीतिक और कार्यक्रम आधारित ध्यान प्राप्त हुआहै।यूनिसेफ ने एनीमिया मुक्त भारत हेतु परिचालन दिशानिर्देशों और इससे संबंधित सामग्रियों, जैसे रिपोर्टिंग डैशबोर्ड (https://anemiamuktbharat.info/dashboard/#/)और संचार सामग्री के विकास हेतु अवधारणा तैयार करने व इसके संकलन में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को सहयोग प्रदान किया है।
इस प्रयास को राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है, और अब इसे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के रूप में चरणबद्ध तरीके से पोषण अभियान के हिस्से के तौर पर पूरे देश में कार्यान्वित किया जा रहा है।इसके लिएलेडी इरविन कॉलेज में एक राष्ट्रीय महिला संग्रहककेंद्र (नेशनल सेन्टर ऑफ विमेन क्लेक्टिव्स)स्थापित किया गया है।