हर बच्चा स्कूल जाए
बच्चों को वापस स्कूल भेजकर शिक्षा प्रक्रिया में शामिल करना

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शिक्षा के क्षेत्र में भारत में ऐसी कई उपलब्धियां जो हमें प्रसन्नता से भर देंगी। भारत में कम से कम 7 करोड़ बच्चे प्री-प्राइमरी स्कूलों में जाते हैं। देश में लगभग सभी बच्चों का प्राइमरी स्कूलों में नामांकन है, और सात राज्यों में शिक्षा के बेहतर परिणाम आए हैं।अपर प्राइमरी (लोअर सेकण्डरी) कक्षाओं की सहभागिता निरंतर बढ़ रही है।
हालांकि, अभी बहुत कुछ किया जाना बाकि है क्योंकि स्कूल जाने वालेअधिकांश बच्चे उम्र के अनुसार सही कक्षा मेंपढ़ाई नहीं कर रहे हैं। छात्रों के लिए खराब गुणवत्ता की शिक्षण सामग्रीतथा अध्यापक केन्द्रित सीखने और सिखाने की प्रथाएं बच्चों को शिक्षा व्यवस्था से बाहर कर रही हैं।
भारत में 6-13 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 60 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते और इनमें से अधिकांश अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के वंचित समुदायों से हैं।
लगभग 36 प्रतिशत लड़कियां और लड़के प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण होने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं। यदि इसमें प्रारंभिक शिक्षाऔर हाई स्कूल के बाद स्कूल छोड़ने वालों की संख्या जोड़े तोयह संख्या और भी विवादपूर्ण और चिंताजनक हो जाती है। ये बच्चे आमतौर पर अति वंचितहोते हैं। यूनिसेफ भारत के छह राज्यों में स्कूल न जाने वाली लड़कियों की संख्या 14.4 लाख तक कम करने के लिए अपने सहयोगियोंके साथ काम कर रहा है।
स्कूल न जाने वाले अधिकतर (75 प्रतिशत) बच्चे छह राज्यों: बिहार, मध्यप्रदेश, ओडिसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में यूनिसेफ कीभारत सरकार के साथ रणनीतिक भागीदारी है जिसका उद्देश्यहै शिक्षा के सिद्धांतों एवं मूल्यों को अनुकूल बनाकर भारतीय समाज के व्यापक समुदायों के लिए शिक्षा को उपयुक्त बनाना।
यह मानते हुए कि कक्षा 1 में पढ़ाई शुरू करने वाले बच्चों में 37 प्रतिशत प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाते और जो प्रारंभिक शिक्षा पूरी करते हैं उनकी पढ़ाई का स्तर इतना अपर्याप्त होता है कि अगले स्तर की शिक्षा के साथ उनका सामंजस्य नहीं बैठ पाता, हमारा कार्य बचपन से लेकर प्रारंभिक शिक्षा तक सभी बच्चों के लिए अच्छी गुणवत्ता, कक्षा-उपयुक्त शिक्षा देने पर केन्द्रित है। ऐसा सभी स्तरों पर सरकारी सिस्टम मजबूत करके और शैक्षणिक कार्यक्रम के समन्वय, कार्यान्वयन और निगरानी को प्रभावी बनाकर किया जाता है।

यूनिसेफ की शिक्षा प्रणाली जो सभी बच्चों के स्कूल जाने और पढ़ाई सुनिश्चित करती है]में शामिल हैं:
1) शुरुआती शिक्षा मजबूत करने के लिए साक्षरता और संख्यात्मक कौशल का आधार विकसित करना
2) सभी स्तरों पर, विशेषकर लड़कियों और वंचित समूहों के लिए परिवर्तन में सहायता देना
3) प्रारंभिक स्तर पर अंतरणीय कौशलों के साथ पढ़ाई के लिए सुरक्षित माहौल बनाना
भारत के 25 करोड़ किशोरों को अपने विकास के लिए अनिवार्य आर्थिक अवसरों तक पहुँचानेके लिए सेकण्डरी शिक्षा में अपेक्षित बुनियादी और अंतरणीय कौशल प्रोत्साहित करना बेहद महत्वपूर्ण है।
यूनिसेफ 3 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के जीवन कौशल विकास (शिक्षा, स्वयं-सशक्तिकरण, सामाजिक और रोज़गार संबंधी कौशल) को सशक्त बनाने के लिए भी सरकार की मदद करता है। ये सॉफ्ट स्किल बच्चों को भारत के तेजी से बढ़ते हुए वातावरण में कामयाब होने के लिए बहुत जरूरी है। इस दृष्टिकोण के मुताबिक सरकार को विशिष्ट फ्रेमवर्क विकसित करने में मदद करना और लगातारव्यावसायिकविकास में जीवन कौशल समाहित करने के लिए योजनाओं का कार्यान्वयन, शिक्षण तथाअध्ययन और स्कूलिंग का आयोजन करना शामिल है। इसके अलावा,स्कूलों में विकास तथा नेतृत्व क्षमता को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों में चिल्ड्रन्स कैबिनेट द्वारा आयोजित खेल-कूद कार्यक्रम भी कारगर साबित हुए हैं।
हमारी मदद से शुरुआती बचपन शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी और समानता एवं समावेशिता भी आएगी जिससे सभी बच्चों की विकासात्मक तैयारी सुनिश्चित करेगी। हम समय पर नामांकन, नियमित उपस्थिति और प्रारंभिक और सेकण्डरी आयु के बच्चों के लिए लचीली शिक्षा प्रणाली से स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या 30 लाख तक कम करना चाहते हैं। इसके अलावा, हम बुनियादी और अंतरणीय कौशल विकास सुनिश्चित करते हुए पढ़ाई के स्तर में 15 प्रतिशत तक सुधार करना चाहते हैं।